वैश्विक स्तर पर ऊर्जा के स्रोतों में बदलाव लाने की प्रक्रिया को न्यायसंगत परिवर्तन यानी ‘जस्ट ट्रांज़िशन’ का नाम दिया गया है. हालांकि, देश के दो राज्यों- छत्तीसगढ़ और झारखंड के कुछ कोयला-निर्भर गांवों के लोगों की दशा यह दिखाती है कि ऐसे सभी परिवर्तन न्यायसंगत नहीं हो सकते.
गोरखपुर ज़िले में नेशनल हाईवे 28 पर बाईपास निर्माण के लिए अधिग्रहीत भूमि का कम मुआवज़ा पाने से नाराज़ 26 गांवों के किसानों ने उचित मुआवज़ा न मिलने पर भाजपा को वोट न देने का नारा बुलंद करते हुए उनके गांव में 'भाजपा नेताओं का प्रवेश वर्जित' लिखे बैनर और पोस्टर लगाए हैं.
ग्राउंड रिपोर्ट: बीते दिनों गोरखपुर प्रशासन पर गोरखनाथ मंदिर के पास ज़मीन अधिग्रहण के लिए यहां के रहवासी कई मुस्लिम परिवारों से जबरन सहमति पत्र पर दस्तख़त करवाने का आरोप लगा है. कई परिवारों का कहना है कि उन्होंने एक कागज़ पर साइन तो कर दिए, लेकिन वे अपना घर नहीं छोड़ना चाहते हैं.
पीठ के सामने ये सवाल था कि सरकार द्वारा सरकारी खजाने में जमा कराए गए मुआवजे को 'मुआवजा अदा किया गया' माना जाएगा या नहीं. इसे लेकर कोर्ट को भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 की धारा 24(2) की व्याख्या करनी थी.
कई किसान संगठनों और व्यक्तियों ने भूमि अधिग्रहण क़ानून के प्रावधानों को चुनौती देने संबंधी मामले की सुनवाई में जस्टिस अरुण मिश्रा के शामिल होने पर आपत्ति जताई है. उनकी दलील है कि जस्टिस मिश्रा पिछले साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से सुनाए गए फैसले में पहले ही अपनी राय रख चुके हैं.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने रामदेव को पत्र लिखकर यह प्रस्ताव दिया है. तीन साल पहले फड़णवीस सरकार ने रामदेव को नागपुर में पतंजलि फूड और हर्बल पार्क के लिए 230 एकड़ ज़मीन मुहैया कराई थी, जो अभी तक शुरू नहीं किया जा सका है.
बस्तर ज़िले के लोहांडीगुड़ा में टाटा के इस्पात संयंत्र के लिए साल 2008 में अधिग्रहित की गई थी आदिवासी किसानों की ज़मीन. कांग्रेस ने घोषणापत्र में किया था ज़मीन वापस दिलाने का वादा.
1925 में आए प्रेमचंद के उपन्यास रंगभूमि में किसान सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण के खिलाफ़ खड़े हो जाते हैं. जो बात रंगभूमि में सूरदास ने कहने की कोशिश की थी, वही आज जब कोई किसान कह रहा है तो उसे निशाना साधकर गोली मारी जा रही है.
महाराष्ट्र सरकार के अनुसार कोंकण की 720 किलोमीटर लंबी तट रेखा एक विशालकाय रिफाइनरी के लिए आदर्श जगह है. 15,000 एकड़ के क्षेत्र में प्रस्तावित इस रिफाइनरी पर काम शुरू होने की स्थिति में 17 गांवों के किसानों और मछुआरों का विस्थापन तय है.
किसानों का कहना है कि उन्हें उनकी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है. साथ ही, सरकार ने हाईवे बनाने के लिए अधिग्रहीत की गई उनकी ज़मीन का भी पर्याप्त मुआवजा नहीं दिया है.