महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के 15 राज्यों के सैकड़ों मज़दूर दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि जब वे समय पर मज़दूरी की मांग करते हैं तो उन्हें काम नहीं मिलता. साथ ही कार्यस्थल पर किसी मज़दूर के घायल हो जाने या उसकी मृत्यु हो जाने पर मुआवज़ा तक नहीं दिया जाता.
झारखंड ग्रामीण विकास विभाग की सामाजिक लेखापरीक्षा इकाई ने मनरेगा के अपने ताजा ऑडिट में कई अनियमितताएं पाई थीं. इस दौरान सामने आया था कि 1.59 लाख से अधिक श्रमिकों का रिकॉर्ड में नाम दर्ज था, लेकिन कार्यस्थल पर केवल 40,629 श्रमिक काम करते मिले थे.
झारखंड से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में कहा कि आरटीआई से हर ब्लॉक में सिर्फ़ बिचौलिये पैदा हुए हैं. चर्चा के दौरान एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि मनरेगा योजना को और सशक्त करने के लिए राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर बेहतर तरीके से काम करने की ज़रूरत है. बेरोज़गारी की वजह से इस योजना की स्पष्ट ज़रूरत है.
कम वेतन में कड़ी मेहनत करने वाले नरेगा श्रमिकों के लिए जटिल केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली दुस्वप्न साबित हुई है. केंद्र को चाहिए कि वह ऐसा सरल, विकेंद्रीकृत तंत्र बनाए जिसमें भुगतानों को मंज़ूरी और भुगतान प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में ग्राम पंचायतों की अहम भूमिका हो. ऐसा तंत्र नरेगा में और अधिक जवाबदेही को बढ़ावा देगा.
मौजूदा वित्त वर्ष (25 मार्च तक) में मनरेगा के तहत 255 करोड़ व्यक्ति कार्य दिवस पैदा किया गया जो कि 2010-11 के बाद से इस योजना के तहत व्यक्ति कार्य दिवस की सबसे अधिक संख्या है.
पत्र में कहा गया है, ‘आपकी सरकार में देश के विकास को गति देने के लिए रोजगार और नौकरियों के सृजन का बार बार वादा किए जाने के बावजूद देश की एकमात्र रोजगार गारंटी योजना मनरेगा को धीरे धीरे समाप्त किया जा रहा है.'
शीर्ष अदालत ने कहा कि मज़दूरों को काम पूरा होने के एक पखवाड़े के भीतर अपना भुगतान पाने का अधिकार है. यदि कोई खामी है तो यह राज्य सरकारों और ग्रामीण विकास मंत्रालय की ज़िम्मेदारी है.