एक आरटीआई आवेदन पर सूचना आयुक्त ने कहा कि राष्ट्रीय अभिलेखागार की वेबसाइट पर महात्मा गांधी से जुड़े दस्तावेज़ आसानी से मिलने मुश्किल हैं.
मोदी अगर सरदार पटेल को अपना नेता मानते हैं तो फिर उन्हें पटेल की धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धता पर अमल करते हुए हिंदू राष्ट्र के लिए हथियार उठाने का आह्वान करने वाले सिरफिरे पर कार्रवाई करनी चाहिए.
26 साल पहले आज ही के दिन स्वयं को रामभक्तों की सेना कहने वालों ने एक ऐसा जघन्य कृत्य किया था जिसके कारण पूरी दुनिया के सामने हिंदू धर्म का सिर हमेशा के लिए कुछ नीचे हो गया.
आरएसएस अगर आज़ादी की लड़ाई के बारे में बात करे तो वो क्या बताएगा? अगर वो सावरकर के बारे में बताएगा तो अंग्रेजों को लिखे गए सावरकर के माफ़ीनामे सामने आ जाते हैं.
'नेता साबरमती के संत गीत की आलोचना कर बापू और अहिंसक आंदोलन के प्रति अपनी नफ़रत दिखा रहे हैं. अगर दिक्कत है तो इस गीत को प्रतिबंधित क्यों नहीं करा देते.'
देश भर के किसान एकजुट होकर लड़ रहे हैं तो दूसरी ओर पूरे देश में किसान आत्महत्याएं भी जारी हैं. महाराष्ट्र में क़र्ज़ माफ़ी के बाद 5 महीने में 1,020 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.
महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी ने कहा, 'युवा पीढ़ी ख़ुद तय करे कि एक हत्यारे को नायक बनाना है या सबको समानता और अधिकार देने वाले महापुरुषों को.'
अभिनव भारत के न्यासी और शोधकर्ता पंकज फड़नीस की गांधी हत्या की फिर से जांच की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है.
कोर्ट ने पूछा- हम फिर से जांच क्यों शुरू करें, याचिकाकर्ता ने कहा- हो सकता है गांधी की हत्या एक संगठित संस्था ने कराई हो, सच सामने आना चाहिए.
अब यह हम पर निर्भर है कि क्या हम ये होने देंगे या अपने दौर के लिए एक नया गांधी रचेंगे.
हिंदू अहिंसक और मुसलमान हिंसक है, यह बात अगर सही हो तो अहिंसा का धर्म क्या है? अहिंसक को आदमी की हिंसा करनी चाहिए, ऐसा कहीं लिखा नहीं है. अहिंसक के लिए तो राह सीधी है. उसे एक को बचाने के लिए दूसरे की हिंसा करनी ही नहीं चाहिए.
गांधी गाय को माता मानते हुए भी उसकी रक्षा के लिए इंसान को मारने से इनकार करते हैं. उनके ही देश में गोरक्षकों ने पीट-पीट कर मारने का आंदोलन चला रखा है.
पुण्यतिथि विशेष: इतिहासकार बिपन चंद्र का कहना था कि राजनीतिक सत्ता पर काबिज होते ही सांप्रदायिक दल लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थानों का गला घोंटने का प्रयास करेंगे.
लगता है वह एक ही प्रधानमंत्री है जो अपने चोले और शक्ल बदल कर हर बरस घंटे भर कुछ बोलता है. उसे इस बार भी बोलना है. जब मैं यह लिख रहा हूं उसके बोले जाने वाले शब्द लिखे जा चुके होंगे. उनके बोलने में लोकतंत्र हर बार मजबूत होता है. उन्हें सुनकर इंसान हर बार मजबूर होता है.
झारखंड सरकार के विज्ञापन को सामाजिक कार्यकर्ताओं ने झूठा बताते हुए की निंदा.