वेनिस बिनाले: कला संसार का उत्सव ज़रूर मनाती है पर उसके त्रास को अनदेखा नहीं करती

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: वेनिस द्वैवार्षिकी की थीम थी- फॉरेनर्स एवरीवेयर. बहुत से देशों में आवश्यक कलात्मक स्वतंत्रता, सुविधाओं के अभाव के चलते कलाकार अजनबी देशों में भागकर बसते और कला सक्रिय होते हैं. ऐसी कला में अक्सर अवसाद का भाव भी होता है, मुक्ति के अलावा.

धर्म के नाम पर हिंसा करना लोकप्रिय हो गया है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करने का ठेका न तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को, न भाजपा को, न किसी राजनेता को मिला हुआ है. ये सभी स्वनियुक्त ठेकेदार हैं, जिनका सामाजिक आचरण हिंदू धर्म के बुनियादी सिद्धांतों से मेल नहीं खाता.

साहित्य और समाज के रिश्ते का सरलीकरण नहीं किया जा सकता

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: कई बार लगता है कि साहित्य और समाज, परिवर्तन और व्यक्ति के संबंध में भूमिकाओं को बहुत जल्दी सामान्यीकृत करने के वैचारिक उत्साह में उनकी सूक्ष्मताओं और जटिलताओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है.

रज़ा का मरणोत्तर कला-जीवन उनके भौतिक जीवन से कहीं बड़ा और लंबा होने जा रहा है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: रज़ा के देहावसान को सात बरस हो गए. इन सात बरसों में उनकी कला की समझ-पहचान और व्याप्ति उनके मातृदेश के अलावा संसार भर में बहुत बढ़ी है. 

मध्य प्रदेशः मंडला ज़िले में प्रस्तावित बसनिया बांध के विरोध में क्यों हैं स्थानीय

मंडला ज़िले की घुघरी तहसील के ओढ़ारी गांव में नर्मदा नदी पर बसनिया बांध प्रस्तावित है. बांध के चलते मंडला और डिंडौरी ज़िले के लगभग 31 आदिवासी बाहुल्य गांव डूब क्षेत्र में आएंगे और 2,700 से अधिक परिवार विस्थापित होंगे. 

मंडला की पहचान अब सतत प्रवाहमान नर्मदा के साथ रज़ा से भी बन रही है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: मध्य प्रदेश के मंडला में चित्रकार सैयद हैदर रज़ा की स्मृति में ज़िला प्रशासन द्वारा बनाई गई कला वीथिका क्षेत्र के एकमात्र संस्कृति केंद्र के रूप में उभर रही है.

जीवन के ज़रूरी मुद्दों को लेकर अप्रासंगिक होती बहसें

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: ग़रीबी, बेरोज़गारी, कुपोषण, शिक्षा का लगातार गिरता स्तर, बढ़ती विषमता, रोज़-ब-रोज़ बढ़ाई जा रही हिंसा-घृणा, असह्य हो रही महंगाई आदि मुद्दों पर बहस ‘सबका साथ सबका विकास’ जैसे जुमले का खोखलापन उजागर कर देगी, इसलिए उन्हें बहस से बाहर रखना सत्ता की सुनियोजित रणनीति है.

मध्य प्रदेश: क्यों आरक्षित सीटें प्रदेश में लोकसभा चुनावों के नतीजों के लिहाज़ से अहम हैं

मध्य प्रदेश की कुल 29 लोकसभा सीटों में से 10 अनसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित हैं. 2014 में भाजपा ने इन सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार उसकी हालत पतली है. इसलिए आरक्षित सीटों पर 75 फीसदी सांसदों के टिकट काट दिए हैं, जबकि अनारक्षित सीटों पर केवल 33 फीसदी ही टिकट काटे गए हैं.