सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा और सीवर, सेप्टिक टैंकों की हाथ से सफाई के ख़तरनाक चलन को समाप्त करने के लिए किसी भी हद तक जाएंगे, चाहे कुछ भी हो जाए. अदालत ने जोड़ा कि यह मुद्दा मानवीय गरिमा के सवाल से जुड़ा है.
सफाई कर्मचारी आंदोलन के आंकड़ों के अनुसार, पिछले छह महीनों में 43 मैनुअल स्कैवेंजरों की मौत हुई है. संगठन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने
उनके लिए बजट में आवंटित धनराशि को 'बहुत कम' बताते हुए कहा कि सफाईकर्मियों की भलाई सरकार की प्राथमिकता में नहीं है.
घटना महाराष्ट्र के विरार की है. एक 25-30 फीट गहरे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में 4 मज़दूर सफाई के लिए उतरे थे, लेकिन इस दौरान दम घुटने से उनकी मौत हो गई. प्रारंभिक जांच में पता चला है कि कर्मचारियों को मास्क समेत किसी भी प्रकार के सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराए गए थे.
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अनुसार, 1993 के बाद से सीवर और सेप्टिक टैंक से होने वाली मौतों के 1,248 मामलों में से इस साल मार्च तक 1,116 मामलों में मुआवज़े का भुगतान किया गया है. 81 मामलों में भुगतान अभी भी लंबित है, जबकि 51 मामले बंद कर दिए गए हैं.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने लोकसभा में बताया कि इस साल 20 नवंबर तक सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 49 मौतें दर्ज की गईं. सबसे ज़्यादा मौतें राजस्थान में हुईं, उसके बाद दूसरे नंबर पर गुजरात रहा.
वीडियो: सरकार के अनुसार, जुलाई 2023 तक देशभर में सीवरों और सेप्टिक टैंकों की में सफ़ाई 9 मौतें हुई हैं, लेकिन सफाई कर्मचारी आंदोलन के अनुसार इस अवधि में 58 मौतें हुईं. 28 अगस्त को दिल्ली के जंतर-मंतर पर मृत कर्मचारियों के परिजनों ने न्याय की मांग उठाते हुए प्रदर्शन किया और सरकार के डेटा पर सवाल भी उठाया.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने लोकसभा में बताया कि 2023 में अब तक इस तरह की नौ मौतें, 2022 में 66, 2021 में 58, 2020 में 22, 2019 में 117 और 2018 में 67 मौतें दर्ज की गईं.
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी डेटा के मुताबिक देश के कुल 766 ज़िलों में से सिर्फ 508 ने ही ख़ुद को मैला ढोने (मैनुअल स्केवेंजिंग) से मुक्त घोषित किया है. देश में पहली बार 1993 में इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. बाद में 2013 में क़ानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया.
एक रिपोर्ट बताती है कि गुजरात के विभिन्न हिस्सों में बीते एक महीने के भीतर ही सीवर की सफाई के दौरान कम से कम आठ कर्मचारियों की मौत हो गई है. ऐसा तब हो रहा है जब इस प्रथा को पूरे देश में अवैध घोषित कर दिया गया है.
गुजरात के अहमदाबाद ज़िले के ढोलका क़स्बे का मामला. पुलिस ने ठेकेदारों के ख़िलाफ़ ग़ैर-इरादतन हत्या और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण क़ानून के तहत मामला दर्ज किया है.
केंद्र सरकार हाथ से मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए स्वरोज़गार योजना पर पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस सांसद मिमी चक्रवर्ती के एक सवाल का जवाब दे रही थी. बीते फरवरी माह में सरकार ने बताया था कि 2018 से 2022 के बीच सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 308 लोगों की मौत हुई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने और आने वाली पीढ़ियों को इस ‘अमानवीय प्रथा’ से रोकने के अपने लगभग 10 साल पुराने फैसले को लागू करने के लिए उठाए गए क़दमों का रिकॉर्ड छह सप्ताह के भीतर अदालत के सामने पेश करे.
एक सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले ने राज्यसभा को सूचित किया कि इन 308 लोगों में से सबसे अधिक 52 मौतें तमिलनाडु में हुईं. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 46 और हरियाणा में 40 लोगों की मौत सीवर सफाई के दौरान दर्ज की गई हैं.
मैला ढोने की प्रथा को ख़त्म करने की दिशा में काम करने वाले संगठन ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ की ओर से कहा गया है कि इस बार के बजट में सफाई कर्मचारियों की मुक्ति, पुनर्वास और कल्याण के लिए एक भी शब्द नहीं कहा गया और न ही इस मद में धन का आवंटन किया गया है. यह हमारे समाज के साथ धोखा है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने बीते अक्टूबर में डीडीए को मुंडका इलाके में सीवर सफाई के दौरान जान गंवाने वाले दो लोगों के परिवार को 10-10 लाख रुपये मुआवज़ा देने को कहा था. ऐसा न किए जाने पर कोर्ट ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि हम ऐसे लोगों से यह बर्ताव कर रहे हैं जो हमारे लिए काम कर रहे हैं ताकि हमारी ज़िंदगी आसान हो.