माओवादियों और आतंकवादियों को हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति का खुलासा तब हुआ, जब 10 अप्रैल 2010 को रामपुर में यूपी एसटीएफ द्वारा सीआरपीएफ के दो कॉन्स्टेबलों को कई कारतूसों के साथ गिरफ़्तार किया था. उस साल 6 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में एक घातक माओवादी हमले में सीआरपीएफ के 76 जवानों की मौत हो गई थी.
12 जुलाई 2009 को राजनांदगांव ज़िले में मानपुर थानाक्षेत्र के मदनवाड़ा, कोरकट्टा और कोरकोट्टी गांव के पास नक्सलियों ने पुलिस दल पर हमला किया था. इसमें ज़िले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक समेत 29 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे. भूपेश बघेल सरकार द्वारा गठित जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अभियान का नेतृत्व ग़ैर-ज़िम्मेदाराना तरीके से किया गया.
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली ज़िले में आईडीडी के ज़रिये किए गए विस्फोट में जवानों को ले जा रहे वाहन के ड्राइवर की भी मौत. इससे पहले नक्सलियों ने गढ़चिरौली में ही सड़क निर्माण कर रही टीम की 25 गाड़ियों को आग लगा दी थी.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सरकार बनते ही किया था हमले की जांच के लिए एसआईटी का गठन. एनआईए के इनकार पर बोले- यह दिखाता है कि भाजपा सरकार ने कुछ छिपाया है.
बस्तर में चलने वाले नक्सल राज की खूनी कहानी हर गांव में आपको सुनने को मिलेगी. बंदूक और हिंसा की राजनीति का नतीजा यह हुआ है कि शांतिपूर्ण जीवन के आदी आदिवासियों का जीवन बिखर चुका है.