समाचार वेबसाइट ‘मिल्लत टाइम्स’ की 9 अप्रैल की महाराष्ट्र में कोविड-19 लॉकडाउन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन पर एक वीडियो रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसके चीफ एडिटर ने बताया कि अधिकतर प्रदर्शनकारी दिहाड़ी मज़दूर थे. वे मुख्यमंत्री निवास के पास विरोध कर रहे थे और उन मुद्दों के बारे में बोल रहे थे, जिनका सामना वे लॉकडाउन के कारण करेंगे.
कोविड-19 महामारी के दौरान मीडिया को लेकर जारी राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार 25 मार्च से 31 मई, 2020 के बीच विभिन्न पत्रकारों के ख़िलाफ़ 22 एफआईआर दर्ज की गईं, जबकि कम से कम 10 को गिरफ़्तार किया गया. इस अवधि में मीडियाकर्मियों पर सर्वाधिक 11 हमले उत्तर प्रदेश में हुए.
सीतामढ़ी ज़िले में एक क्वारंटीन सेंटर में अव्यवस्थाओं के लेकर हुए प्रवासी मज़दूरों के हंगामे की ख़बर करने वाले पत्रकार पर प्रशासन की ओर से मामला दर्ज करवाते हुए कहा गया है कि पत्रकार ने मज़दूरों को उकसाया था. बेगूसराय में भी एक स्थानीय पत्रकार के ख़िलाफ़ एफआईआर हुई है.
कोरोना वायरस को फैलने के रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान हिमाचल प्रदेश में प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं को सामने लाने और प्रशासनिक कमियों को उजागर करने के कारण कम से कम छह पत्रकारों के ख़िलाफ़ यह कार्रवाई की गई है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यालय ने एक बयान जारी कर कहा था कि सभी मीडियाकर्मियों को मंत्रालय में प्रवेश से पहले अधिकारियों से अनुमति लेनी होगी वरना उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा.
बजट पेश होने से कुछ दिन पहले गोपनीयता बनाए रखने के लिए वित्त मंत्रालय में पत्रकारों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी जाती है, लेकिन बजट पारित होने के बाद ये पाबंदी हटा ली जाती है. हालांकि, इस बार ऐसा नहीं किया गया.
सामूहिक रूप से 2.6 करोड़ मासिक पाठक वर्ग वाले तीनों बड़े अख़बार समूहों का कहना है कि मोदी के पिछले महीने लगातार दूसरी बार भारी बहुमत से चुनकर सत्ता में आने से पहले ही उनके करोड़ों रुपये के विज्ञापनों को बंद कर दिया गया.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ख़ुद एक कन्नड़ समाचार चैनल ‘कस्तूरी न्यूज़’ के मालिक हैं, जो उनकी पत्नी और विधायक अनीता कुमारस्वामी द्वारा चलाया जाता है.
विशेष: वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी बता रहे हैं कि न्यूज़ चैनलों पर नकेल कसने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के भीतर बनाई गई 200 लोगों की ‘गुप्त फ़ौज’ क्या और कैसे काम करती है.
मीडिया संगठनों ने मीडिया मालिकों से सरकार के दबाव के सामने न झुकने का अनुरोध किया.
बेस्ट ऑफ 2018: अपने इस लेख में मास्टरस्ट्रोक कार्यक्रम के एंकर रहे पुण्य प्रसून बाजपेयी उन घटनाक्रमों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं जिनके चलते एबीपी न्यूज़ चैनल के प्रबंधन ने मोदी सरकार के आगे घुटने टेक दिए और उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा.
सूत्रों के अनुसार चैनल में हुए इन बदलावों के बीच भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को पिछले हफ्ते संसद भवन में कुछ पत्रकारों से कहते सुना गया था कि वे ‘एबीपी को सबक सिखाएंगे.’
साल दर साल भारत में मीडिया पर नियंत्रण और सेंसरशिप ख़त्म होने के बजाय बढ़ रही है. इस मामले में सभी राजनीतिक दल एक जैसे हैं. वे आज़ाद मीडिया की जगह नियंत्रित मीडिया को प्यार करते हैं.
अंतरराष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि 2015 से अब तक सरकार की आलोचना करने वाले नौ पत्रकारों की हत्या कर दी गई.
प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर अंतर्राष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ओर से किए गए एक अध्ययन में 180 देशों की सूची में भारत 136वें स्थान पर है.