सात देशों के 17 पत्रकारों ने रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के साथ मिलकर एनएसओ ग्रुप के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई है. संगठन की ओर से कहा गया है कि जांच में उन सभी लोगों की पहचान करनी चाहिए, जो इसमें शामिल थे, फिर चाहे वह कंपनी के कार्यकारी अधिकारी हो या संबंधित देशों के वरिष्ठ सरकारी अधिकारी. एक ऐसे स्कैंडल में जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता को खामियाजा भुगतना पड़े, किसी तरह का संदेह नहीं रहना चाहिए.
केंद्र सरकार ने इस सप्ताह की शुरुआत में राज्यसभा सचिवालय को पत्र लिखकर कहा था कि भाकपा सांसद बिनॉय विश्वम द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब नहीं दिया जाना चाहिए. विश्वम ने पूछा था कि क्या सरकार ने पूरे देश में साइबर सुरक्षा के माध्यम से आतंकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए इज़रायली कंपनी एनएसओ समूह के साथ किसी एमओयू समझौता किया है? सरकार ने जवाब न देने के पीछे तर्क दिया था कि यह मामला अदालत में विचारधीन
भाकपा सांसद बिजॉय विश्वम ने राज्यसभा में केंद्र सरकार से पूछा था कि सरकार ने इज़रायली कंपनी एनएसओ ग्रुप के साथ कोई समझौता किया था या नहीं? इस पर केंद्र को 12 अगस्त को राज्यसभा में जवाब देना था. सरकार ने राज्यसभा सचिवालय को पत्र लिखकर कहा है कि इस मामले में कई जनहित याचिकाएं दायर किए जाने के बाद से यह सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए इसका जवाब नहीं दिया जाना चाहिए.
सीजेआई एनवी रमना की पीठ ने इजरायली स्पायवेयर मामले की जांच का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी नहीं किया. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे अपनी याचिकाओं की प्रतियां केंद्र को मुहैया कराएं ताकि अगली सुनवाई में सरकार की ओर से नोटिस स्वीकार करने के लिए कोई मौजूद रहे.
इज़रायल के एनएसओ समूह के पेगासस स्पायवेयर से जासूसी के आरोपों के सामने आने के बाद पहली बार इससे प्रभावित लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया है. पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम अब्दी, प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह और कार्यकर्ता इप्सा शताक्षी की ओर से ये याचिकाएं दायर की गई हैं. इससे पहले वरिष्ठ पत्रकार एन. राम और शशि कुमार ने भी सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि फ्रांस की राष्ट्रीय साइबर सिक्योरिटी एजेंसी ने पुष्टि की है कि इजरायली स्पायवेयर पेगासस के ज़रिये फ्रांस की वेबसाइट मेदियापार के दो पत्रकारों के फोन में घुसपैठ की गई. मेदियापार वही वेबसाइट है, जिसने सबसे पहले फ्रांस में रफाल विमान सौदे की जांच को लेकर खुलासा किया था.
पेरिस की वेबसाइट मेदियापार की रिपोर्ट में बताया गया है कि दासो एविएशन ने अनिल अंबानी समूह के साथ पहला समझौता 26 मार्च 2015 को हुआ था. इसके दो हफ्ते बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 126 रफ़ाल विमानों के सौदे को रद्द करते हुए 36 विमानों की खरीद के फ़ैसले की सार्वजनिक घोषणा की थी.
रफ़ाल सौदे को लेकर फ्रांस के एक न्यायाधीश को सौंपी गई न्यायिक जांच को लेकर विपक्ष ने केंद्र की मोदी सरकार को निशाने पर लिया है. फ्रांसीसी इनवेस्टिगेटिव वेबसाइट मेदियापार ने बीते दो महीनों में इस सौदे से जुड़े संभावित अपराधों को लेकर कई ख़बरें प्रकाशित की थीं, जिसके बाद जांच के आदेश दिए गए हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक भ्रष्ट व्यक्ति हैं, जिन्होंने 36 लड़ाकू विमानों की ख़रीद में अनिल अंबानी को 30,000 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया.
फ्रांस की इनवेस्टिगेटिव वेबसाइट 'मीडियापार्ट' ने डास्सो एविएशन के दस्तावेज़ के हवाले से बताया है कि राफेल का अनुबंध हासिल करने के लिए डास्सो का अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस से पार्टनरशिप करना 'अनिवार्य' था. इस रिपोर्ट के बाद डास्सो ने सफाई दी है कि उसने बिना किसी दबाव के रिलायंस को चुना था.