सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने संसद में बताया कि 2019 में छात्रों की आत्महत्या से मौत की 10,335 घटनाएं दर्ज की गईं, 2020 व 2021 में यह आंकड़ा क्रमशः 12,526 और 13,089 दर्ज किया गया. एससी और एसटी छात्रों द्वारा आत्महत्या की संख्या पर मंत्रालय ने कहा कि इसका डेटा उपलब्ध नहीं है.
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी डेटा के मुताबिक देश के कुल 766 ज़िलों में से सिर्फ 508 ने ही ख़ुद को मैला ढोने (मैनुअल स्केवेंजिंग) से मुक्त घोषित किया है. देश में पहली बार 1993 में इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. बाद में 2013 में क़ानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय स्थायी समिति के समक्ष केंद्र सरकार ने जो आंकड़े रखे हैं, उनके मुताबिक़ वित्त वर्ष 2022-23 में अनुसूचित जाति के छात्रों और अन्य के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे, लेकिन वास्तविक व्यय केवल 56 लाख रुपये किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने और आने वाली पीढ़ियों को इस ‘अमानवीय प्रथा’ से रोकने के अपने लगभग 10 साल पुराने फैसले को लागू करने के लिए उठाए गए क़दमों का रिकॉर्ड छह सप्ताह के भीतर अदालत के सामने पेश करे.
एक सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले ने राज्यसभा को सूचित किया कि इन 308 लोगों में से सबसे अधिक 52 मौतें तमिलनाडु में हुईं. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 46 और हरियाणा में 40 लोगों की मौत सीवर सफाई के दौरान दर्ज की गई हैं.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने ओडिशा में जातिगत अत्याचारों में आई कमी को अंतरजातीय विवाहों की संख्या में हुई वृद्धि से जोड़ते हुए कहा है कि ऐसे विवाहों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के लिए और अधिक प्रयास करने की ज़रूरत है.
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में 92, 2018 में 67, 2019 में 116, 2020 में 19, वर्ष 2021 में 36 और 2022 में अब तक 17 मौतें हुईं. इस दौरान सबसे ज़्यादा उत्तर प्रदेश में 51 लोगों की जान गई है.
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने राज्यसभा में बताया कि पिछले तीन साल के दौरान सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करते समय हुईं दुर्घटनाओं के कारण 161 लोगों की मौत हो गई. सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि सरकार का हाथ से मैला उठाने वालों को नकारना कोई नई बात नहीं है.
केंद्र सरकार द्वारा अनुसूचित जाति/जनजाति और भूमिहीन कृषि श्रमिक परिवारों से आने वाले छात्रों को विदेश में पढ़ने के लिए दी जाने वाली राष्ट्रीय ओवरसीज़ छात्रवृत्ति योजना में बिना किसी से सलाह-मशविरे और उससे लाभांवित तबकों की राय जाने बिना किए गए विषय संबंधी बदलाव बहुसंख्यकवादी असुरक्षा का नतीजा हैं.
समाज कल्याण और अधिकारिता मंत्रालय की राष्ट्रीय ओवरसीज़ छात्रवृत्ति योजना के तहत अनुसूचित जाति/ जनजाति और भूमिहीन कृषि श्रमिक परिवारों से आने वाले छात्रों को उच्च-रैंकिंग वाले विदेशी विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है. इस साल बिना हितधारकों से चर्चा किए योजना से मानविकी व समाज विज्ञान विषयों को हटा दिया गया है.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के सचिव आर. सुब्रह्मण्यम ने कहा कि मंत्रालयीन स्तर पर विचार के बाद यह महसूस किया गया कि विदेश जाकर भारतीय इतिहास, संस्कृति और विरासत पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति की ज़रूरत नहीं है. कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने इसे दलितों को उच्च शिक्षा प्रणाली से बाहर करने वाला क़दम बताया है.
देश भर के डॉक्टरों की मांग है कि नीट-पीजी पास किए 50,000 एमबीबीएस डॉक्टरों की तत्काल काउंसलिंग कराई जाए, ताकि नए डॉक्टरों की भर्ती से उन पर मरीज़ों का बोझ घटे और कोरोना वायरस महामारी की आगामी आशांका को लेकर वे ख़ुद को उचित रूप से तैयार कर सकें.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास आठवले ने संसद में बताया कि सरकार की ओर से सिर पर मैला ढोने वालों की धर्म और जाति को लेकर कोई अध्ययन नहीं किया गया है. हालांकि इनकी पहचान करने के लिए मैनुअल स्केवेंजर अधिनियम 2013 के प्रावधानों के अनुसार सर्वेक्षण किए गए हैं. इन सर्वेक्षणों के दौरान मैला ढोने वालों की पहचान की गई है.
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने राज्यसभा में बताया कि देश भर में हाथ से मैला ढोने वाले कुल 58,098 सफाईकर्मियों की पहचान की गई है. हाथ से मैला ढोने के कारण किसी की मौत होने की ख़बर नहीं है लेकिन सीवर या सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कर्मियों की मौत होने की जानकारी है.
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने संसद में कहा था कि हाथ से मैला साफ-सफाई के कारण किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि हाथ से मैला ढोना पहले से ही अमानवीय है. सरकार सम्मान के मौलिक अधिकार से इनकार कर रही है. इन लोगों और मौतों की गिनती तक नहीं कर रही है. यह अस्पृश्यता का एक आधुनिक रूप है. एक दलित के जीवन की अनदेखी है.