केंद्र सरकार ने मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप (एमएएनएफ) योजना को बंद कर दिया है. देश के लगभग 30 विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं और डॉक्टरेट छात्रों ने अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखकर कहा है कि सरकार मौजूदा एमएएनएफ फेलो के लिए छात्रवृत्ति राशि में वृद्धि नहीं करके अल्पसंख्यक छात्रों के ख़िलाफ़ भेदभाव कर रही है.
केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा संचालित मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फेलोशिप योजना के लाभार्थियों को महीनों से उनकी अनुदान राशि न मिलने के चलते उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. कुछ तो अपनी पढ़ाई छोड़ने पर भी विचार कर रहे हैं. सरकार द्वारा पिछले दिसंबर में कहा गया था कि अब से इस फेलोशिप को बंद किया जा रहा है.
आरोप है कि बीते 26 जनवरी को अजमेर स्थित राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुछ छात्रों ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘मोदी: द इंडिया क्वेश्चन’ को देखा था. इसके बाद एबीवीपी द्वारा 24 छात्रों के नाम की सूची जारी करके हंगामा किया गया था और विश्वविद्यालय ने छात्रों को 14 दिन के लिए निलंबित कर दिया.
'पढ़ो प्रदेश ब्याज सब्सिडी योजना' के तहत अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को विदेश में पढ़ाई हेतु लिए गए ऋण पर ब्याज में सब्सिडी दी जाती थी. 2006 में शुरू हुई यह योजना अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री के पंद्रह सूत्रीय कार्यक्रम का हिस्सा थी.
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा में बताया कि अल्पसंख्यक समुदायों के रिसर्च स्कॉलर्स को मिलने वाली मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप को इस शैक्षणिक वर्ष से बंद किया जा रहा है. यह फेलोशिप सच्चर समिति की सिफ़ारिशों को लागू करने के लिए यूपीए शासनकाल में शुरू की गई थी.
केंद्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार क़ानून का हवाला देते हुए एक नोटिस जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि वह इस क़ानून के तहत पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्रों को अनिवार्य शिक्षा प्रदान कर रही है, इसलिए स्कॉलरशिप दिए जाने की ज़रूरत नहीं है.