सुप्रीम कोर्ट ने कन्नड़ साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की पत्नी द्वारा दायर एसआईटी जांच की याचिका पर इन सभी को 6 हफ्तों के भीतर जवाब देने को कहा है.
इतिहासकार गुहा ने ट्वीट किया था, ‘आज के भारत में स्वतंत्र लेखकों और पत्रकारों को प्रताड़ित किया जा रहा, यहां तक कि हत्या कर दी जा रही, लेकिन हमें चुप नहीं किया नहीं जा सकता.'
वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या पांच सितंबर को बेंगलुरु स्थित उनके घर में कर दी गई थी.
अंग्रेज़ी प्रभावशाली भाषा है, मगर इसकी पहुंच सीमित है. क्षेत्रीय भाषाओं के पत्रकार असली असर पैदा कर सकते हैं. छोटे शहरों के ऐसे कई साहसी पत्रकार हैं, जिन्होंने अपने साहस की क़ीमत अपनी जान देकर चुकाई है.
आम आदमी पार्टी से जुड़े आशीष खेतान का कहना है, यूपीए सरकार भले ही अयोग्य रही हो, वह इन समूहों की विचारधारा से इत्तेफ़ाक नहीं रखती थी, लेकिन वर्तमान सत्ता को इन्हीं समूहों से समर्थन मिलता है.
शब्द और विचार हर किस्म के कठमुल्लों को बहुत डराते हैं. विचारों से आतंकित लोगों ने अब शब्दों और विचारों के ख़िलाफ़ बंदूक उठा ली है.
वे हत्या के पक्ष में दलीलें देने लगे. वे हत्यारों को बधाइयां देने लगे. उन्होंने गौरी लंकेश की हत्या को सिर्फ जायज़ नहीं ठहराया. वे हत्या के बाद ठंडी पड़ चुकी उस लाश को गालियां देने लगे. जैसे वे उस पर और गोलियां चलाना चाहते हों.
गौरी की हत्या एक चेतावनी है. हत्यारों को पता है कि वे सुरक्षित हैं. वे बेखौफ़ होकर अपना काम करते रहेंगे.
भाजपा विधायक डीएन जीवराज ने कहा कि गौरी लंकेश जिस तरह लिखती थीं, वो बर्दाश्त के बाहर था. गौरी मेरी बहन जैसी हैं लेकिन जिस तरह उन्होंने लिखा, वो स्वीकार नहीं किया जा सकता.'
हमने बचपन से सुना था कि किसी की मौत के बारे में बुरा मत बोलो क्योंकि मरा आदमी अपनी सफाई नहीं दे सकता. पर ये लोग तो जैसे मरने का इंतज़ार कर रहे थे. ये कहां पले-बढ़े हैं, ये कहां से आते हैं?
जनता को नहीं पता होता कि उसके साथ सत्ता क्या कर रही है. ऐसे मेें ख़तरा उनसे होता है जो जनता से उनकी भाषा में सत्ता का सच बताते हैं. इसलिए उन्हें ख़ामोश करने की कोशिश की जाती है.
देश के विभिन्न राज्यों के पत्रकार संगठनों समेत आम नागरिकों ने इस जघन्य हत्या की निंदा की. अमेरिकी दूतावास और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी चिंता जताई.
डराने की कोई साज़िश गौरी जैसी निडर आवाज़ों को नहीं दबा सकती.