यह विडंबना ही है कि मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने वाले राम के नाम पर संविधान की मर्यादा का हनन हो रहा है और हिंदू इसमें उल्लास, उत्साह एवं उमंग से भाग ले रहे हैं तथा गर्व का अनुभव भी कर रहे हैं.
भारतीय गणतंत्र इस बात को भी भला कैसे भूलेगा कि इसके लिए प्रधानमंत्री ने ‘धर्माचार्य’ का चोला धारण कर लिया था और उनके ‘सिपहसालार’ उन्हें विष्णु का अवतार और प्राण-प्रतिष्ठा की तारीख को 1947 के 15 अगस्त जितनी महत्वपूर्ण बता रहे थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आगमन की तैयारियां भी रामलला के स्वागत की तैयारियों से कमतर नहीं हैं. स्ट्रीट लाइट्स पर मोदी के साथ भगवान राम के कट-आउट्स लगे हुए हैं, जिनकी ऊंचाई पीएम के कट-आउट्स से भी कम है. यह भ्रम होना स्वाभाविक है कि 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान राम आएंगे या प्रधानमंत्री मोदी को आना है?
जहां तक धार्मिक आस्थाओं की बात है, उन्हें यों भी समझ सकते हैं कि प्राय: सभी धार्मिक समूहों में ऐसी पवित्र पुस्तकें और बानियां हैं, जिन्हें परमेश्वरकृत ‘परम प्रामाणिक सत्य’ माना जाता है. इनमें आस्था इस सीमा तक जाती है कि उनमें जो कुछ भी कहा या लिखा गया है, वही संपूर्ण सत्य और ज्ञान है और जो उनमें नहीं है, वह न सत्य है, न ज्ञान.
1 नवंबर को आयात प्रबंधन प्रणाली की शुरुआत के बाद से आयातकों को खुद को पंजीकृत करना होता है और यह बताना होता है कि कितने लैपटॉप और कंप्यूटर आयात किए जा रहे हैं और किन स्रोतों से आयात किए जा रहे हैं.
केंद्र सरकार ने पिछले साल ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का अध्ययन करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्चाधिकार समिति का गठन किया था. कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि सरकार, संसद और चुनाव आयोग को इसके बजाय लोगों के जनादेश का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत पहले से ही जीएम फसलों से प्राप्त तेल का आयात और उपभोग करता है और ‘प्रतिकूल प्रभाव की ऐसी निराधार आशंकाओं के आधार पर ऐसी तकनीक का विरोध केवल किसानों, उपभोक्ताओं और उद्योग को नुकसान पहुंचा रहा है’ और ‘भारतीय कृषि के लिए हानिकारक होगा’. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा.
नीति आयोग के रिपोर्ट में दावा किया गया कि 2022-23 तक नौ वर्षों में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी ग़रीबी से बाहर आ गए हैं. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार इन लोगों को कल्याणकारी योजनाओं और मुफ्त राशन के सुरक्षा से बाहर करने के लिए साज़िश रच रही है. पार्टी ने कहा कि यह ‘भाजपा के ईको सिस्टम का स्पष्ट झूठ’ है.
अयोध्या को भारत की, या कहें हिंदुओं की धार्मिक राजधानी के रूप में स्थापित करने का राज्य समर्थित अभियान चल रहा है. लोगों के दिमाग़ में 22 जनवरी, 2024 को 26 जनवरी या 15 अगस्त के मुक़ाबले एक अधिक बड़े और महत्त्वपूर्ण दिन के रूप में आरोपित करने को भरपूर कोशिश हो रही है.
वीडियो: जम्मू-कश्मीर के हालात, राम मंदिर, सांप्रदायिकता, मोदी सरकार के कामकाज समेत विभिन्न मुद्दों पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की बातचीत.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2023 की चौथी तिमाही में भारतीयों को जारी किए गए स्टडी परमिट में पिछली तिमाही की तुलना में 86% की गिरावट आई थी. कनाडा के इमिग्रेशन मंत्री के मार्क मिलर ने कहा कि भारत के कनाडाई राजनयिकों को बाहर करने के चलते परमिट प्रक्रिया ख़ासी प्रभावित हुई है.
अयोध्या का मंदिर हिंदू जनता पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी तथा उनके सहयोगी संगठन के कसे हुए शिकंजे का मूर्त रूप है. इसमें होने जा रही प्राण-प्रतिष्ठा का निश्चय ही भक्ति, पवित्रता और पूजा से लेना-देना नहीं है.
सवाल है कि राम मंदिर को लेकर 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतिम फैसला सुनाए जाने के बाद पूरे चार साल तक मोदी सरकार हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रही. जवाब यही है कि 2024 के आम चुनावों के कुछ दिन पहले ही रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बहाने हिंदुत्व का डंका बजाकर वोटों की लहलहाती फसल काटना आसान बन जाए.
डीयू के दौलतराम कॉलेज की एक एडहॉक शिक्षक डॉक्टर ऋतु सिंह को अगस्त 2020 में अचानक नौकरी से निकाल दिया गया था. उनका दावा है कि इसकी वजह जातिगत भेदभाव है, जिसे लेकर वे कॉलेज की प्रिंसिपल सविता रॉय के ख़िलाफ़ अगस्त 2023 से विरोध प्रदर्शन कर रही हैं.
मस्जिद की विकास समिति के नए प्रमुख ने कहा है कि अब लक्ष्य भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक को ‘ताजमहल से भी बेहतर’ बनाने का है. उन्होंने कहा कि हम यह सुनिश्चित करेंगे कि अयोध्या, गंगा-जमुनी तहज़ीब का बेहतरीन उदाहरण बने. इस हद तक विज्ञापन करेंगे कि जो कोई भी राम मंदिर देखने आएगा, वह मस्जिद भी देखने यहां पहुंचेगा.