ज़मानत नीति में सुधार के एक मामले को सुनते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों द्वारा हर प्रयास किया जाना चाहिए कि जब वे ज़मानत दें, तो इसका कोई अर्थ होना चाहिए क्योंकि ऐसी ज़मानत शर्तें, जो क़ैदी की आर्थिक स्थिति से परे हों, लगाने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता है.
नवंबर 2022 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान दिवस पर दिए गए भाषण में ज़मानत राशि भरने के लिए पैसे की कमी के कारण ग़रीब आदिवासियों के जेल में बंद होने का ज़िक्र किया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे क़ैदियों का ब्योरा उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे.
महाराष्ट्र में क़ानूनी सहायता की स्थिति और उपलब्धता पर एक विस्तृत अध्ययन से पता चलता है कि 2016 और 2019 के बीच राज्य की जेलों में बंद कुल विचाराधीन क़ैदियों में से 8 फीसदी से भी कम क़ानूनी सहायता सेवाओं तक पहुंच बना सके. क़ैदियों में से अधिकांश अशिक्षित हैं और हाशिये की जातियों एवं धर्मों से संबंधित हैं.
भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने न्याय तक पहुंच को ‘सामाजिक उद्धार का उपकरण’ बताते हुए कहा कि आधुनिक भारत का निर्माण समाज में असमानताओं को दूर करने के लक्ष्य के साथ किया गया था. लोकतंत्र का मतलब सभी की भागीदारी के लिए स्थान मुहैया कराना है. सामाजिक उद्धार के बिना यह भागीदारी संभव नहीं होगी.
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने ‘क़ानूनी सेवा दिवस’ के मौक़े पर राष्ट्रीय क़ानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि क़ानून में शिक्षित छात्र समाज के कमजोर और वंचित वर्गों की आवाज़ बनने के लिए सशक्त हैं.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित ने गुजरात के भुज में एक कानूनी सेवा शिविर और जागरूकता कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हमारी शिक्षा समावेशी नहीं है. कुछ गांवों और बड़े शहरों में जो शिक्षा प्रदान की जाती है, उनकी गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं है. हमें इन सब पर विचार करना चाहिए. जब तक हम इसे हासिल नहीं कर लेते, सतत विकास मानकों के अनुसार शिक्षा के मामले में हम कमज़ोर रहेंगे.
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने एक कार्यक्रम में कहा कि जेल में बंद महिलाओं को अक्सर गंभीर पूर्वाग्रह, लांछन और भेदभाव का सामना करना पड़ता है तथा पुरुष क़ैदियों की भांति इन महिला क़ैदियों का समाज में फिर से एकीकरण सुनिश्चित करने के लिए कल्याणकारी राज्य के रूप में भारत का सेवाएं प्रदान करने का दायित्व बनता है.
सीजेआई एनवी रमना ने एक कार्यक्रम में कहा कि हमारे संविधान में इस बात की गारंटी दी गई है कि लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा होगी, फिर भी थानों में क़ानूनी प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता जिसके अभाव में गिरफ़्तार या हिरासत में लिए गए लोगों को वहां सबसे अधिक ख़तरा रहता है.
सुप्रीम कोर्ट ने सात मई को कोरोना के मामले में अप्रत्याशित बढ़ोतरी पर संज्ञान लेते हुए राज्य सरकारों से उन क़ैदियों को तुरंत रिहा करने के लिए कहा था, जिन्हें पिछले साल ज़मानत या पैरोल दी गई थी. अदालत ने राज्य सरकारों को 23 जुलाई तक क़ैदियों की रिहाई में पालन किए गए मानदंडों की विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने बीते मार्च महीने में कोरोना वायरस के मद्देनज़र जेलों में भीड़भाड़ को कम करने का निर्देश दिया था. राष्ट्रीय क़ानूनी सेवा प्राधिकरण की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक 9,977 विचाराधीन क़ैदियों को रिहा किया गया.
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के निदेशक ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यह चौंकाने वाला है कि आंध्र प्रदेश में 2017 में यौन हिंसा के 901 मामले दर्ज हुए परंतु सिर्फ एक ही पीड़ित को मुआवज़ा मिल सका.
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को 4 माह के अंदर कोष को मिले धन और उससे हुए वितरण की जानकारी देने का निर्देश दिया है.
शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के मुख्य सचिवों को जेल में सालों से रह रहे क़ैदियों की स्थिति पर हलफ़नामा दर्ज करने का आदेश दिया है.