हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी भले ही पूर्ण बहुमत के साथ रिकॉर्ड तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रही हो, लेकिन उसके 10 में से 8 मंत्री चुनाव हार गए. वहीं, कांग्रेस ने निर्दलीय चुनाव लड़े पार्टी के बाग़ियों की बग़ावत से खासा नुकसान झेला है.
पिछली बार भाजपा ने जिन पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी- 2014 में कश्मीर की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और 2019 में हरियाणा की जननायक जनता पार्टी- इस चुनाव में उन दोनों का सफाया हो गया है.
सेना में जवानों की अल्पकालिक भर्ती के लिए लाई गई 'अग्निपथ' योजना, दिल्ली की सीमाओं पर अपनी मांगों को लेकर डटे किसान और राजधानी में ही पुलिस द्वारा घसीटे गए प्रदर्शनकारी पहलवानों के मुद्दों की हरियाणा के मौजूदा विधानसभा चुनावों में गहरी छाप नज़र आती है.
समय-समय पर जारी सरकारी रिपोर्टों, निजी संगठनों के श्रम बल के आंकड़ों और रोज़गार बाजार के रुझानों से विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, को यह विश्वास मिला है कि बेरोज़गारी का मुद्दा उठाकर वह भाजपा को सत्ता में वापसी करने से रोक सकते हैं.
हरियाणा के वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व मंत्री अनिल विज 6 बार के विधायक हैं और अंबाला छावनी सीट से उम्मीदवार हैं. हालांकि, भाजपा पहले ही मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नाम का ऐलान कर चुकी है.
हरियाणा में तीन निर्दलीय विधायकों द्वारा भारतीय जनता पार्टी की नायब सिंह सैनी सरकार से समर्थन वापस लेकर कांग्रेस में जाने के साथ ही सदन में भाजपा के पास 43 विधायकों का समर्थन रह गया है. यह आंकड़ा बहुमत से दो कम है.
हाल ही में हरियाणा सरकार के नवगठित मंत्रिमंडल से हटाए गए पूर्व गृह मंत्री अनिल विज ने अंबाला में हुई एक रैली में बिना किसी का नाम लिए कहा कि कुछ लोगों ने उन्हें उनकी ही पार्टी में बेगाना कर दिया है, पर कई बार बेगाने अपनों से भी ज़्यादा काम करते हैं.
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