कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस चुनाव ने निश्चय ही लोकतंत्र को सशक्त-सक्रिय किया है पर उसकी परवाह न करने वालों को फिर सत्ता में बने रहने का अवसर देकर अपने लिए ख़तरा भी बरक़रार रखा है.
2014 और 2019 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने के लिए क्षेत्रीय दलों की ज़रूरत नहीं थी. लेकिन इस बार है. ऐसे में भाजपा नहीं चाहेगी कि गठबंधन के प्रमुख घटक दलों, ख़ासकर तेदेपा और जदयू में से कोई नाराज़ हो.
क्या स्वयंसेवक उस सामाजिक स्वीकार्यता की अनदेखी कर पाएंगे जो मोदी सरकार के कारण उन्हें मिली है? क्या नाराज़ स्वयंसेवक अपने प्रचारक प्रधानमंत्री से दूरी बना पाएंगे? या वे आख़िरकार सामंजस्य कर लेंगे, यह सोचकर कि 2025 के अपने शताब्दी वर्ष में सत्ता से बाहर रहने का जोखिम उठाना बुद्धिमानी नहीं?
नरेंद्र मोदी के मन में कांग्रेस को लेकर ऐसा भय समा गया है कि वे अपनी बात कहने की बजाय सिर्फ़ कांग्रेस और उनके नेताओं के ख़िलाफ़ भाषण देते हैं. वे कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को लेकर गहरे सदमे में हैं. राहुल गांधी उनका दु:स्वप्न बन गए हैं.
केंद्र द्वारा राज्यसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल जनवरी से सितंबर की तुलना में इस साल सितंबर तक सड़क हादसों में 2.2 प्रतिशत की कमी आई है लेकिन इन हादसों में मरने वालों की संख्या 0.2 प्रतिशत बढ़ गई है.
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 में देश में सड़क दुर्घटनाओं में तक़रीबन 1.50 लाख लोग, 2017 में 1.47 लाख लोग और साल 2018 में 1.51 लाख लोग मारे गए.
अपने संकल्प पत्र में भारतीय जनता पार्टी ने आदिवासियों और परंपरागत वन निवासियों को लेकर जिस कदर बेरुखी दिखाई है उससे यह साबित हो रहा है कि पार्टी को देश के इन नागरिकों की कोई चिंता नहीं है.
लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा से ठीक पहले केंद्र सरकार ने भाजपा को इसके मुख्यालय के लिए अतिरिक्त 2 एकड़ ज़मीन देने के तीन साल पुराने प्रस्ताव को मंज़ूरी दी.
सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि यूपीए सरकार के दौरान 3.85 लाख करोड़ की 403 सड़क परियाजनाएं ठप पड़ी थीं. वर्तमान सरकार ने मई 2014 में सत्ता संभालने के बाद 3 लाख करोड़ की ठप परियोजनों को चालू किया.