इस बार का बजट चालाकी से अपने असली इरादों को जनकल्याण के परदे में छिपाता है

बजट 2023-24 का लोकलुभावनवाद यह है कि यह दिखने में तो समाज के हर वर्ग, चाहे वे स्त्रियां हों, जनजातियां, दलित, किसान या फिर सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम, को कुछ न कुछ देने की बात करता है, लेकिन घोषणाओं का तभी कोई अर्थ होता है, जब हर किसी के लिए लिए पर्याप्त फंड का आवंटन भी हो.

बीते नौ सालों से ठहरी अर्थव्यवस्था को ‘अमृत काल’ का यह बजट कोई ख़ास राहत नहीं देता

बजट को चाहे जितना भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए, नरेंद्र मोदी के सत्ता में नौ साल की विरासत मैन्युफैक्चरिंग, निजी निवेश और रोज़गार में ठहराव की है. हाल के दिनों में बढ़ती महंगाई एक अतिरिक्त समस्या बन गई है.

बजट 2023: नई कर प्रणाली के तहत सात लाख रुपये की सालाना आय पर कोई टैक्स नहीं

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के अंतिम पूर्ण बजट को पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नई कर व्यवस्था की घोषणा की. उन्होंने यह भी जोड़ा कि अब से आयकर स्लैब की संख्या छह से घटाकर पांच की गई है.