संपत्ति मौद्रिकरण योजना: रेलवे, टेलीकॉम और पेट्रोलियम क्षेत्र वित्त वर्ष 2023 के लक्ष्य से दूर

राष्ट्रीय मौद्रिकरण पाइपलाइन के तहत केंद्र की महत्वाकांक्षी संपत्ति मौद्रिकरण योजना में वित्त वर्ष 2022-23 में रेलवे, दूरसंचार व पेट्रोलियम क्षेत्र तय निर्धारित लक्ष्यों से पिछड़ गए हैं, जिसके चलते योजना लक्ष्य से चूकती दिख रही है. नतीजतन, राजस्व और निवेश में लक्ष्य के मुकाबले लगभग 50 हज़ार करोड़ रुपये की कमी हो सकती है.

हमने 70 साल में भारत को बनाया, भाजपा अब उसे बेचने में व्यस्त है: कांग्रेस

बीते 23 अगस्त को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने छह लाख करोड़ रुपये की राष्ट्रीय मौद्रिकरण योजना की घोषणा की थी. सरकार मौद्रिकरण के ज़रिये सरकारी स्वामित्व वाली संपत्तियों में अपनी हिस्सेदारी निजी क्षेत्रों को बेचेगी. गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि 2014 में सत्ता में आने से पहले भाजपा पूछती थी कि कांग्रेस ने 70 साल में क्या किया है. इसका जवाब संपत्तियों की वह सूची है, जो वह बेच रही है.

देश की संपत्ति क्यों बेच रही है मोदी सरकार?

वीडियो: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा छह लाख करोड़ रुपये की राष्ट्रीय मौद्रिकरण योजना की घोषणा बीते दिनों की गई. योजना के तहत यात्री ट्रेन, रेलवे स्टेशन से लेकर सड़क जैसे अलग-अलग बुनियादी ढांचा क्षेत्रों का मौद्रिकरण शामिल है. यानी सरकार मौद्रिकरण के ज़रिये इन क्षेत्रों में अपनी हिस्सेदारी निजी क्षेत्रों को बेचेगी. इस मुद्दे पर अर्थशास्त्री अरुण कुमार से आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.

मौद्रिकरण पर राहुल गांधी बोले- बहुमूल्य संपत्तियां उद्योगपति मित्रों को तोहफ़े में दे रहे मोदी

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा छह लाख करोड़ रुपये की राष्ट्रीय मौद्रिकरण पाइपलाइन की घोषणा किए जाने पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि यह सब कुछ कंपनियों का एकाधिकार बनाने के लिए किया जा रहा है. वहीं माकपा ने कहा कि सरकार ने देश ‘बेचने’ की आधिकारिक घोषणा की है.

केंद्र ने छह लाख करोड़ रुपये की राष्ट्रीय मौद्रिकरण योजना की घोषणा की

राष्ट्रीय मौद्रिकरण योजना के तहत यात्री ट्रेन, रेलवे स्टेशन से लेकर सड़क जैसे अलग-अलग बुनियादी ढांचा क्षेत्रों का मौद्रिकरण शामिल है. यानी सरकार मौद्रिकरण के ज़रिये इन क्षेत्रों में अपनी हिस्सेदारी निजी क्षेत्रों को बेचेगी. कोविड लॉकडाउन और उसके बाद की मंदी ने निजीकरण की प्रक्रिया को धीमा कर दिया है, सरकार को अभी भी चालू वित्त वर्ष से मार्च 2022 तक इस तरह की बिक्री से 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने की उम्मीद है.