मोदी सरकार द्वारा राज्यसभा में दिए गए आंकड़े बताते हैं कि पिछले 2018 और 2022 के बीच आईएएस, आईपीएस और भारतीय वन सेवा में की गई कुल 4,365 नियुक्तियों में ओबीसी से 695, एससी से 334 और एसटी समुदायों से 166 उम्मीदवारों को नियुक्त किया गया है.
डीयू और बीएचयू में क्रमश: 299 और 228 एसोसिएट प्रोफेसर स्तर पर आरक्षित श्रेणियों के लिए सबसे अधिक रिक्तियां हैं. इलाहाबाद विश्वविद्यालय, विश्व भारती विश्वविद्यालय और हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय जैसे अन्य विश्वविद्यालयों में प्रत्येक में 200 से अधिक पद ख़ाली हैं.
गृह मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया कि 2021 तक उत्तर प्रदेश में 90,606 विचाराधीन क़ैदी थे, जिनमें से 21,942 अनुसूचित जाति, 4,657 अनुसूचित जनजाति और 41,678 ओबीसी वर्ग के थे. एक अन्य प्रश्न के उत्तर में मंत्रालय ने यह भी बताया कि सज़ा पूरी होने के बाद जुर्माना राशि का भुगतान न करने के कारण 1,410 अपराधी देश की जेलों में बंद हैं.
विज्ञान की एक प्रमुख पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि भारत में आईआईटी-आईआईएस समेत विज्ञान क्षेत्र के प्रतिष्ठित संस्थानों में फैकल्टी पदों को भरने के लिए आरक्षण नियमों का पालन नहीं हो रहा है. वहीं, इन संस्थानों के विभिन्न पाठ्यक्रमों में भी दलित और आदिवासी छात्रों का प्रतिनिधित्व कम है.
केंद्रीय क़ानून मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 से 19 दिसंबर, 2022 तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में कुल 537 न्यायाधीश नियुक्त किए गए, जिनमें से 79 प्रतिशत सामान्य वर्ग, 11 फीसदी ओबीसी, 2.6 प्रतिशत अल्पसंख्यक वर्ग से थे. अनुसूचित जातियों/जनजातियों की हिस्सेदारी क्रमशः 2.8 प्रतिशत और 1.3 प्रतिशत थी.
छत्तीसगढ़ में आरक्षण का दायरा 76 प्रतिशत तक बढ़ाने वाले दो संशोधन विधेयक राज्यपाल के पास सहमति के लिए लंबित हैं, जिन्होंने अपनी स्वीकृति देने से पहले राज्य की कांग्रेस सरकार से 10-बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा था. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन पर विधेयकों को रोकने और एक वैधानिक निकाय को कमज़ोर करने का प्रयास करने का आरोप लगाया है.
एक संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया, भारत संचार निगम लिमिटेड, गेल और केनरा बैंक के शीर्ष प्रबंधन में ओबीसी समुदाय की अनुपस्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि निदेशक मंडल में सामाजिक समावेशन के लिए ओबीसी को उचित प्रतिनिधित्व देना अनिवार्य है.
राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में वर्तमान में संयुक्त सचिव और सचिव का पद रखने वाले 322 अधिकारी हैं, जिनमें अनुसूचित जाति के 16, अनुसूचित जनजाति के 13, अन्य पिछड़ा वर्ग के 39 और सामान्य श्रेणी के 254 कर्मचारी हैं.
केरल हाईकोर्ट ने 3 दिसंबर को उन कई याचिकाओं पर सुनवाई की, जिनमें बोर्ड के उस मानदंड को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत केवल केरल के ब्राह्मण ही सबरीमाला मंदिर में मुख्य पुजारी के पद के लिए आवेदन कर सकते हैं. याचिकाकर्ताओं ने इसे भारतीय संविधान के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है.
छत्तीसगढ़ विधानसभा में पारित विधेयकों के अनुसार, राज्य में अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए चार प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है. इसके साथ ही राज्य में आरक्षण का कुल कोटा 76 प्रतिशत हो गया है.
मामला तमिलनाडु के चेन्नई का है. मद्रास विश्वविद्यालय के एक दलित पीएचडी स्कॉलर को यहीं पढ़ने वाली छात्रा से प्रेम हो गया, जो कि ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. छात्रा ने अपने परिवार की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ शादी कर ली तो उनके पिता ने युवक पर केस दर्ज करा दिया. फिलहाल उन्हें रिहा कर दिया गया है.
प्रतिभा के कारण अवसर मिलते हैं. यह वाक्य ग़लत है. यह कहना सही है कि अवसर मिलने से प्रतिभा उभरती है. सदियों से जिन्होंने सारे अवसर अपने लिए सुरक्षित रखे, अपनी प्रतिभा को नैसर्गिक मानने लगे हैं. वे नई-नई तिकड़में ईजाद करते हैं कि जनतंत्र के चलते जो उनसे कुछ अवसर ले लिए गए, वापस उनके पास चले जाएं.
संविधान की मूल संरचना का आधार समानता है. आज तक जितने संवैधानिक संशोधन किए गए हैं, वे समाज में किसी न किसी कारण से व्याप्त असमानता और विभेद को दूर करने वाले हैं. पहली बार ऐसा संशोधन लाया गया है जो पहले से असमानता के शिकार लोगों को किसी राजकीय योजना से बाहर रखता है.
गै़र-सरकारी संगठन ‘ऑक्सफैम इंडिया’ और समाचार वेबसाइट ‘न्यूजलॉन्ड्री’ द्वारा अप्रैल 2021 से मार्च 2022 के बीच की अवधि में की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि मुख्यधारा के किसी भी मीडिया घराने में अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के लोग नेतृत्व की भूमिका में नहीं थे.
वर्ष 2012 में राज्य की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा सरकारी नियुक्तियों, मेडिकल, इंजीनियरिंग और अन्य कॉलेजों में दाखिले में कुल आरक्षण का प्रतिशत 50 से बढ़कर 58 प्रतिशत कर दिया गया था. हाईकोर्ट ने इसे रद्द करते हुए कहा कि ऐसा करना सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के विरुद्ध है.