इंटरनेट पर ट्रोल्स की तादाद इतनी हो चुकी है कि लगता नहीं कि वे जल्दी यहां से जाने वाले हैं. लेकिन अगर उनकी चरित्रगत ग्रंथियां, उनके तरीके और तकनीकें समझ लें, तो अपनी मानसिक शांति और संतुलन खोए बिना उनके उत्पात और हमलों का सामना कर पाएंगे.
ट्रोलिंग पर विशेष सीरीज़: जेएनयू छात्रसंघ की पूर्व उपाध्यक्ष शहला राशिद बता रही हैं कि सोशल मीडिया पर अब ट्रोलिंग नहीं हो रही है बल्कि गालियां और रेप की धमकी दी जा रही हैं जो कि आपराधिक कृत्य है.
ट्रोलिंग पर विशेष सीरीज़: वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ बता रहे हैं कि ट्रोल्स को गंभीरता से लिए जाने की ज़रूरत नहीं है.
ट्रोलिंग पर विशेष सीरीज़: वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ से अमित सिंह की बातचीत.
स्वतंत्र पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी बता रही हैं कि एक लोकतंत्र में अगर सरकार नागरिकों पर हमला कर रही है तो हम किस लोकतंत्र में रह रहे हैं?
ट्रोलिंग पर विशेष सीरीज़: जेएनयू छात्रसंघ की पूर्व उपाध्यक्ष शहला राशिद से अमित सिंह की बातचीत.
वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ होली के मौके पर सोनिया गांधी को गुलाल लगाती उस तस्वीर की पूरी कहानी बता रहे हैं.
ट्रोलिंग पर विशेष सीरीज़: वरिष्ठ पत्रकार और ‘आई एम अ ट्रोल: इनसाइड द सीक्रेट डिजिटल आर्मी ऑफ द बीजेपी’ किताब की लेखिका स्वाति चतुर्वेदी से कृष्णकांत की बातचीत.
वैशाखनंदन शब्द की उत्पति पर दर्जनों पोस्ट लिखकर ‘गधा विमर्श’ का ऐसा माहौल बना दिया गया है गोया जो वैशाखनंदन न समझ पाए वो भी उन्हीं के उत्तराधिकारी हैं.
‘जुमला जयंती पर आनंदित, पुलकित, रोमांचित वैशाखनंदन’ वाक्य में व्यंग्य अवश्य है, घृणा कतई नहीं.
मृणाल पांडे में बाकी जो भी दुर्गुण हों, वे असभ्य और अशालीन होने के लिए नहीं जानी जातीं. वे किसी रूप में वामपंथी भी नहीं हैं. उन पर बीजेपी विरोधी होने का भी वैसा इल्ज़ाम नहीं रहा है, जैसा दूसरों पर है.
आॅनलाइन गुंडागर्दी: ट्रोलिंग पर द वायर हिंदी की विशेष सीरीज़ की पहली कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार विद्या सुब्रमण्यम अपना अनुभव साझा कर रही हैं.
ट्रोलिंग पर विशेष सीरीज़: पहली कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार विद्या सुब्रमण्यम बता रही हैं कि कैसे साल 2013 में आरएसएस पर उनके एक लेख की वजह से उन्हें प्रताड़ना झेलनी पड़ी थी.