कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस समय नहीं कहने और करने का आशय है भारतीय सभ्यता, भारतीय परंपरा, भारतीय लोकतंत्र के अपनी प्रतिबद्धता का इसरार करना. जो इस समय नहीं कहने-करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा वह नैतिक चूक का चरित्र होगा.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पिकासो की ऊर्जा और कल्पनाशीलता अथक और अपरंपार थी. फिर पिकासो से रोथको तक जाना बिल्कुल भिन्न कलासंसार में जाना है. उनके यहां कला गहन विचार, सतत चिंतन और बहुत ठहराव से उपजती है. वह कुछ गहरा और अप्रत्याशित देखती-दिखाती है पर ख़ुद को कुछ कहने से रोकती है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: 1948 में सैयद हैदर रज़ा का पूरा परिवार पाकिस्तान चला गया था, वे यह कहकर नहीं गए कि भारत उनका वतन है और वे उसे नहीं छोड़ सकते. अब विडंबना यह है कि उनके कला-जीवन की सबसे बड़ी प्रदर्शनी पेरिस के कला संग्रहालय में हो रही है, भारत के किसी कला संस्थान में नहीं.