सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति को पेगासस जासूसी मामले में सात बिंदुओं पर जांच करने और सात बिंदुओं पर महत्वपूर्ण सिफ़ारिश करने का निर्देश दिया गया है. अदालत ने कहा कि सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देने मात्र से न्यायालय मूक दर्शक बना नहीं रह सकता है.
कुछ दिन पहले इज़रायल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने फ्रांस के अपने समकक्ष के साथ बातचीत करने के लिए गुप्त रूप से पेरिस का दौरा किया था, जिसका उद्देश्य फ्रांस के राष्ट्रपति और अन्य शीर्ष अधिकारियों के सेल फोन को इज़रायली कंपनी एनएसओ समूह द्वारा तैयार किए गए पेगासस स्पायवेयर के कथित इस्तेमाल को लेकर पैदा हुए संकट को समाप्त करना था.
यूएई पर आरोप है कि उसने पेगासस स्पायवेयर के ज़रिये ब्रिटेन के कई नंबरों को निगरानी के लिए निशाना बनाया था. यूएई के उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री शेख़ मोहम्मद बिन राशिद अल-मकतूम को एनएसओ समूह का क्लाइंट माना जाता है. शेख़ की बेटी राजकुमारी लतीफ़ा और उनकी पूर्व पत्नी राजकुमारी हया, जो 2019 में देश छोड़कर ब्रिटेन आ गए थे, दोनों के नंबर पेगासस निगरानी सूची में दिखाई देते हैं.
द वायर सहित एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इज़रायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के ज़रिये कई देशों के नेता, पत्रकार, कार्यकर्ताओं आदि के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई या फिर वे सर्विलांस के संभावित निशाने पर थे.
पेगासस प्रोजेक्ट के तहत मिले दस्तावेज़ दिखाते हैं कि 2019 में जिन भारतीय नंबरों को वॉट्सऐप ने हैकिंग को लेकर चेताया था, वे उसी अवधि में में चुने गए थे जब वॉट्सऐप के मुताबिक़ पेगासस स्पायवेयर ने इस मैसेजिंग ऐप की कमज़ोरियों का फायदा उठाते हुए उसके यूज़र्स को निशाना बनाया था.
फ्रांसीसी वेबसाइट मेदियापार ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि फ्रांसीसी सुरक्षा एजेंसी द्वारा की गई एक जांच में पांच कैबिनेट मंत्रियों के फोन में ख़तरनाक पेगासस स्पायवेयर के होने का पता चला है. जुलाई महीने में पेगासस प्रोजेक्ट के तहत सामने आए संभावित सर्विलांस का निशाना बने फोन नंबरों के डेटाबेस में भी इन मंत्रियों के नंबर मिले थे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर अगले हफ्ते अंतरिम आदेश पारित करेगा. मौखिक तौर पर तकनीकी समिति गठित करने के बारे में कोर्ट ने कहा कि वह इसी हफ्ते आदेश देना चाहता था लेकिन जिन लोगों को इसमें लेना था, उनमें से कुछ ने निजी वजहों का हवाला देते हुए इसका हिस्सा बनने से मना कर दिया.
बेल्जियम की सैन्य ख़ुफ़िया एजेंसी का मानना है कि रवांडा सरकार द्वारा ऐसा किए जाने की संभावना है. पत्रकार पीटर वरलिंडेन ने काफी लंबे समय तक मध्य अफ्रीका में रिपोर्टिंग की है. पत्रकार ने कहा कि पेगासस क्या कर सकता है, यह बहुत निराशाजनक है. जो कोई भी आपके फोन में पेगासस भेजता है, वह आपके फोन पर पूरा क़ब्ज़ा कर लेता है. वे अच्छी तरह जानते हैं कि आप कहां हैं.
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि सरकार ने किसी विशेष सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं, यह सार्वजनिक चर्चा का विषय नहीं है. उन्होंने कहा कि ऐसी जानकारी का खुलासा करने से राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा है.
जर्मन मीडिया के ख़ुलासे के अनुसार, साल 2020 के आखिर में जर्मन फेडरल क्रिमिनल पुलिस ऑफिस ने पेगासस स्पायवेयर खरीदा था, जिसका इस्तेमाल इस साल मार्च से आतंकवाद और संगठित अपराध से संबंधित चुनिंदा अभियानों में किया गया.
बीते 16 अगस्त को सुनवाई के दौरान केंद्र ने पेगासस जासूसी मामले में याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए गए सभी आरोपों से इनकार करते हुए कहा था कि वह इज़रायल के एनएसओ समूह के पेगासस स्पायवेयर से जुड़े आरोपों के सभी पहलुओं को देखने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करेगी. अदालत ने कहा था कि हलफ़नामे में सरकार द्वारा स्पायवेयर का इस्तेमाल किए जाने या न होने के आरोपों को संतुष्ट नहीं किया गया है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया है कि उसके पास सूचना है, जिसे हलफ़नामे के ज़रिये सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. यह इस बात की स्वीकारोक्ति है कि इस स्पायवेयर का उपयोग किया गया.पेगासस जासूसी मामले में केंद्र ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि हलफ़नामे में सूचना की जानकारी देने से राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा जुड़ा है.
चीफ जस्टिस एनवी रमना की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर कहा कि सरकार को दस दिनों के भीतर इन आरोपों का जवाब देना होगा कि क्या इजरायली कंपनी के स्पाईवेयर का जासूसी में इस्तेमाल किया गया या नहीं.
फ्रांस की सरकार ने न सिर्फ ‘अपुष्ट मीडिया रपटों’ को गंभीरता से लिया, बल्कि जवाबदेही तय करने और अपने नागरिकों, जो ग़ैर क़ानूनी जासूसी का शिकार हुए या हो सकते थे, के हितों की रक्षा के लिए स्वतंत्र तरीके से कार्रवाई की. इसके उलट भारत ने निगरानी या संभावित सर्विलांस के शिकार व्यक्तियों को ही नकार दिया.
सुप्रीम कोर्ट में एक हलफ़नामा दाख़िल कर नरेंद्र मोदी सरकार ने कहा कि कुछ निहित स्वार्थों द्वारा दिए गए किसी भी ग़लत विमर्श को दूर करने और उठाए गए मुद्दों की जांच करने के उद्देश्य से विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाएगा. हालांकि, सरकार ने यह नहीं बताया कि वह ऐसा कब करेगी, समिति में कौन होगा या समिति जांच में कितना समय लेगी.