नई प्रणाली के तहत शीर्ष अदालत के जज दो अलग-अलग पालियों में काम कर रहे हैं. प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार को कुल 30 जज मुक़दमों की सुनवाई करते हैं और दो-दो न्यायाधीशों की पीठ का ही गठन किया जाता है. प्रत्येक पीठ औसतन 60 से अधिक मामलों की सुनवाई करती है, जिनमें नई जनहित याचिकाएं शामिल हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2021 में राजद्रोह, शासकीय गोपनीयता अधिनियम और यूएपीए समेत राष्ट्र के ख़िलाफ़ विभिन्न अपराध के आरोप में 5,164 मामले, यानी हर दिन औसतन 14 मामले दर्ज किए गए. पिछले साल देश में राजद्रोह के कुल 76 मामले और यूएपीए के कुल 814 मामले दर्ज किए गए थे.
केंद्रीय सतर्कता आयोग की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 31 दिसंबर 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक इन 6,700 मामलों में से 275 मामले 20 वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं. कुल 1,939 मामले ऐसे हैं, जो विभिन्न अदालतों में 10-20 साल से चल रहे हैं, जबकि 2,273 मामलों में सुनवाई 5-10 साल से चल रही है.
साल 2015 से नौ राज्यों - महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल, मिज़ोरम और मेघालय - ने सीबीआई से जांच के लिए ज़रूरी आम सहमति वापस ले ली है. विपक्ष शासित इन राज्यों ने आरोप लगाया है कि सीबीआई उसके मालिक (केंद्र) की आवाज़ बन गई है और वह विपक्षी नेताओं को ग़लत तरीके से निशाना बना रही है.
देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने एक कार्यक्रम में कहा कि न्याय देने से जुड़े मुद्दों पर ग़लत जानकारी और एजेंडा-संचालित बहसें लोकतंत्र के लिए हानिकारक साबित हो रही हैं. प्रिंट मीडिया अब भी कुछ हद तक जवाबदेह है, जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई जवाबदेही नहीं है, यह जो दिखाता है वो हवाहवाई है.
श्रीनगर में हुए एक समारोह में सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह ज़रूरी है कि लोग महसूस करें कि उनके अधिकारों और सम्मान को मान्यता दी गई है और उन्हें संरक्षित किया गया है. उन्होंने जोड़ा कि हम अपनी अदालतों को समावेशी और सुलभ बनाने में बहुत पीछे हैं. अगर इस पर तत्काल ध्यान नहीं देते हैं, तो न्याय तक पहुंच का संवैधानिक आदर्श विफल हो जाएगा.
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में बताया कि जहां तक अदालतों में जजों के ख़ाली पड़े पदों का सवाल है तो देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों के उच्च न्यायालयों में सबसे अधिक पद ख़ाली पड़े हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थायी और अतिरिक्त पदों पर सर्वाधिक 67 रिक्तियां हैं.
लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि केंद्र सरकार ने 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 1,023 फास्ट ट्रैक विशेष अदालतें गठित करने की योजना शुरू की है, जिनमें 389 विशेष पॉक्सो अदालतें भी शामिल हैं. ऐसा इसलिए किया गया, ताकि पॉक्सो एक्ट के तहत बलात्कार से जुड़े मामलों की सुनवाई और उनका निपटान तेजी से किया जा सके.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में हाल में नियुक्त किए गए जस्टिस अभय एस. ओका ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि क़ानूनी पेशे के सदस्यों को न्यायपालिका में देश के नागरिकों का भरोसा बहाल करने की दिशा में काम करना चाहिए. देश में इस समय न्यायाधीशों और जनसंख्या का अनुपात प्रति 10 लाख लोगों के लिए 17 या 18 न्यायाधीश हैं. न्यायाधीशों की कमी की समस्या से निपटा जाना चाहिए और इस अनुपात में सुधार किया जाना चाहिए.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, विचाराधीन 20,806 नए और पुराने मामलों में से 344 मामले पुलिस हिरासत में मौत के, 3,407 मामले न्यायिक हिरासत में मौत के, 365 मामले पुलिस मुठभेड़ में मौत के हैं. वित्त वर्ष 2021-22 में अब तक उसे 53,191 शिकायतें मिली हैं. सितंबर में 10,627 नई शिकायतें मिलीं.
सुप्रीम कोर्ट जघन्य अपराधों में दोषी पाए गए जनप्रतिनिधियों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और उनके मुक़दमों का शीघ्र निपटारा करने के अनुरोध संबंधी जनहित याचिका सुन रहा है. अदालत ने एजेंसी द्वारा त्वरित जांच और सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए जिनमें उच्च न्यायालयों द्वारा अतिरिक्त विशेष अदालतों की स्थापना शामिल है.
सुप्रीम कोर्ट जघन्य अपराधों में दोषी पाए गए जनप्रतिनिधियों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और उनके मुक़दमों का शीघ्र निपटारा करने के अनुरोध संबंधी जनहित याचिका सुन रहा है. कोर्ट ने जांच और सुनवाई में अत्यधिक देरी पर भी चिंता जताई और केंद्र से कहा कि वह ज़रूरी मानव संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराए.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के ‘आपराधिक न्याय प्रणाली पर कोर समूह’ ने कहा कि यह महसूस किया गया कि मामलों के निस्तारण में विलंब विचाराधीन और सज़ायाफ़्ता क़ैदियों के मानवाधिकार का उल्लंघन है. जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि न केवल सुनवाई में देरी होती है, बल्कि किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने वाले अदालत के आदेशों को लागू करने में भी सालों लग जाते हैं, जो चिंता का विषय है.
केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में बताया कि साल 2019 से इस साल 23 जुलाई तक सुप्रीम कोर्ट में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित कुल 3,036 जनहित याचिकाएं दायर की गईं. देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित दायर मामलों में ओडिशा सबसे आगे है, जहां इस अवधि में कुल 1,552 याचिकाएं दायर की गई हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के 25 उच्च न्यायालयों में 57.51 लाख से अधिक लंबित मामलों में 54 प्रतिशत मामले पांच उच्च न्यायालयों- इलाहाबाद, पंजाब एवं हरियाणा, मद्रास, बॉम्बे और राजस्थान में हैं. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के डेटा के अनुसार, 56.4 प्रतिशत लंबित मामले पिछले पांच वर्षों के दौरान मामले दायर किए गए हैं, जबकि 40 प्रतिशत लंबित मामले 5 से 20 साल पहले दर्ज किए गए थे.