पुस्तक अंश: दारा ने इस्लाम का गहरा अध्ययन किया था. उनकी किताबें अल्लाह और मुहम्मद साहब का उल्लेख करती हैं, लेकिन उन्हें विधर्मी और काफ़िर घोषित कर उनकी हत्या कर दी गई.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पूर्व सिविल सेवकों के 'संवैधानिक आचरण समूह' ने सांप्रदायिक घृणा, हिंसा, चुनाव और मतदान, मौलिक अधिकारों समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर पत्र लिखे हैं. किताब के रूप में उन पत्रों का संचयन इस डराऊ-धमकाऊ समय में निर्भय, जागरूक साहस और असहमति का दस्तावेज़ है.
इस 22 फरवरी को चित्रकार सैयद हैदर रज़ा 102 बरस के हुए होते. विदेश में बसा एक कलाकार अपनी कला में धीरे-धीरे अपने छूट गए देश को कैसे पुनरायत्त करता है, इसका रज़ा एक बेहद प्रेरक उदाहरण हैं. उन्होंने, विसंगति-बेचैनी-तनाव से फ्रांस में जूझते हुए जीवन और कला में शिथिल पड़ गए संतुलन, संगति और शांति को खोजने की कोशिश की.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस समय भारत या अन्यत्र भी सबसे अधिक नवाचार, सार्थक दुस्साहसिकता, कल्पनाशील जोखिम ललित कलाओं में है. सामग्री की विविधता, उसका विस्मयकारी उपयोग चकरा देने वाला है. इस विचार की इससे पुष्टि होती है कि किसी भी तरह की सामग्री से कला-कल्पना कला रच सकती है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: राम की महिमा है कि उनकी स्तुति में शामिल होकर हत्यारे-लुटेरे-जघन्य अपराधी अपने पाप धो लेंगे और राम-धवल होकर अपना अपराधिक जीवन जारी रखेंगे. राम की महिमा है कि उन्होंने इतना लंबा वनवास सहा, अनेक कष्ट उठाए जो यह तमाशा, अमर्यादित आचरण भी झेल लेंगे.
शायर मुनव्वर राना लंबे समय से गले के कैंसर से पीड़ित थे. लखनऊ स्थित संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ में उनका निधन हुआ. उनके परिजनों ने बताया कि बीमारी के कारण वह 14 से 15 दिनों तक अस्पताल में भर्ती थे. देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में अक्टूबर 2015 में उन्होंने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था.
पुण्यतिथि विशेष: अदम तब भी नहीं हकलाए, जब वंचितों के सारे हक़ों को मारकर बैठे सत्ताधीशों व हाक़िमों ने अपनी भृकुटियां टेढ़ी कर लीं और सबक सिखाने पर आमादा हो गए. अफ़सोसजनक है कि आज सत्ता ने सवालों की राह ऐसी बना दी है कि अनेक सवालिया निगाहें उसकी ओर उठने की हिम्मत तक नहीं कर पा रहीं.
जन्मदिन विशेष: रामधारी सिंह दिनकर उन कवियों के लिए सबक थे- आज भी हैं- जो कई बार देश ओर कविता के प्रति अपनी निष्ठाओं की क़ीमत पर ‘अपनी’ सरकार के चारण बन जाते हैं.
पुण्यतिथि विशेष: असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि में रची कविता में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह के आह्वान के बाद नज़रुल इस्लाम ‘विद्रोही कवि’ कहलाए. उपनिवेशवाद, धार्मिक कट्टरता और फासीवाद के विरोध की अगुआई करने वाली उनकी रचनाओं से ही इंडो-इस्लामिक पुनर्जागरण का आगाज़ हुआ माना जाता है.
विशेष: मुक्तिबोध ने कहा था ‘तय करो किस ओर हो तुम?’ और ‘पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?’ वरवरा राव इस सवाल से आगे के कवि हैं. वे तय करने के बाद के तथा पॉलिटिक्स को लेकर वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाले कवि हैं. उनके लिए कविता स्वांतः सुखाय या मनोरंजन की वस्तु न होकर सामाजिक बदलाव का माध्यम है.
छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में 1937 में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल को उनकी विशिष्ट लेखन शैली के लिए पहचाना जाता है. पुरस्कार समारोह 2 मार्च को न्यूयॉर्क में आयोजित किया जाएगा.
स्मृति शेष: बीते 22 फरवरी को प्रसिद्ध कवि, अनुवादक और संपादक सुरेश सलिल का निधन हो गया. विश्व साहित्य के हिंदी अनुवाद के साथ-साथ उन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी की रचनावली के संपादन का महत्वपूर्ण काम किया था.
तमिल कवयित्री सुकीरथरिणी को न्यू इंडियन एक्सप्रेस समूह द्वारा अपने-अपने क्षेत्र में अग्रणी 12 महिलाओं को दिए जाने वाले 'देवी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था. अवॉर्ड से इनकार करते हुए सुकीरथरिणी ने कहा कि अडानी समूह द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम का हिस्सा बनना उनके लेखन और सिद्धांतों के ख़िलाफ़ होगा.
जन्मदिन विशेष: रघुवीर सहाय की कविता राजनीतिक स्वर लिए हुए वहां जाती है, जहां वे स्वतंत्रता के स्वप्नों के रोज़ टूटते जाने का दंश दिखलाते हैं. पर लोकतंत्र में आस्था रखने वाला कवि यह मानता है कि सरकार जैसी भी हो, अकेला कारगर साधन भीड़ के हाथ में है.
अली सरदार जाफ़री को उनके अद्भुत साहित्य सृजन के साथ जीवट भरे स्वतंत्रता संघर्ष और अप्रतीम फिल्मी करिअर के लिए तो जाना ही जाता है. उर्दू व हिंदवी की नज़दीकियों, उर्दू में छंदमुक्त शायरी को बढ़ावा देने, सर्वहारा की दर्दबयानी और साम्यवाद के फलसफे के लिए भी याद किया जाता है.