कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ क़ानून के तहत ज़िला अधिकारियों को नियुक्त करने का आदेश

कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 राज्यों को हर ज़िले में एक अधिकारी नियुक्त करने का आदेश देता है, जो अधिनियम के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि यह पाया गया है कि कई राज्यों ने इन वर्षों में ज़िला अधिकारियों को नियुक्त करने की जहमत नहीं उठाई.

खेलों में महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल और निवारण प्रणाली की ज़रूरत: सुप्रीम कोर्ट जज

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस हिमा कोहली ने जेंडर आधारित दुर्व्यवहार की शिकायतों का समयबद्ध निपटारा करने का मजबूत तंत्र बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा है कि इससे पूरे समाज को संदेश जाएगा कि खेलों में शामिल महिलाएं सम्मान, गरिमा और हर तरह के भेदभाव व उत्पीड़न से सुरक्षा की हक़दार हैं.

महिला सहकर्मी के फिगर पर टिप्पणी करना, साथ बाहर चलने के लिए पूछना यौन उत्पीड़न: कोर्ट

मुंबई की निजी कंपनी के एक असिस्टेंट मैनेजर और सेल्स मैनेजर पर संस्थान की फ्रंट ऑफिस एक्ज़िक्यूटिव के यौन उत्पीड़न का आरोप है. एक स्थानीय अदालत ने उनकी अग्रिम ज़मानत की याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि उनकी टिप्पणियां और साथ चलने के लिए बार-बार पूछना महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के समान है.

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम की स्थिति चिंताजनक: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न विरोधी क़ानून को पेश किए जाने के एक दशक बाद भी ‘स्थिति चिंताजनक’ है, जबकि यह केंद्र और राज्यों के लिए सकारात्मक कार्रवाई करने का समय था. अदालत ने कहा कि अक्सर देखा जाता है कि जब महिलाएं कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करती हैं, तो वे शिकायत करने से हिचकती हैं. उनमें से कई तो अपनी नौकरी छोड़ भी देती हैं.

कोचिंग संस्थानों में यौन उत्पीड़न क़ानून का अमल सुनिश्चित करें राज्य: राष्ट्रीय महिला आयोग

कोचिंग सेंटरों में यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को लिखा है कि सभी कोचिंग संस्थानों को छात्राओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए प्रभावी क़दम उठाने के निर्देश दिए जाएं.

कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़े फ़ैसलों की रिपोर्टिंग पर लगाई रोक

बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे आदेशों को न्यायालय की वेबसाइट पर भी अपलोड नहीं किया जाना चाहिए और इन शर्तों का पालन न करना अदालत की अवमानना ​​होगी. हाईकोर्ट ने कहा कि यदि किसी भी फ़ैसले को सार्वजनिक किया जाना है तो पहले उसके लिए न्यायालय के आदेश की आवश्यकता होगी.