प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और प्रेस एसोसिएशन ने हिंदी समाचार पोर्टल 'बोलता हिंदुस्तान' और 'नेशनल दस्तक' के यूट्यूब चैनलों पर लगाए गए प्रतिबंध को 'प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला' बताते हुए इस रोक को हटाने की मांग की है.
महाराष्ट्र के रत्नागिरी के एक स्थानीय दैनिक अख़बार में कथित आपराधिक पृष्ठभूमि वाले भू-एजेंट पंढरीनाथ आंबेरकर से संबंधित ख़बर छपने के बाद इसे लिखने वाले पत्रकार शशिकांत वारिशे को कथित तौर पर कार से कुचलकर मार दिया गया था. यह कार कथित तौर पर आरोपी ही चला रहा था. पुलिस से उसे गिरफ़्तार कर लिया है.
प्रेस एसोसिएशन ने कहा कि प्रेस काउंसिल पहले से ही फ़र्ज़ी समाचार की कई शिकायतों पर फैसला कर रही है. पीआईबी जैसी विशुद्ध रूप से सरकारी संस्था को फेक न्यूज़ को निर्धारित करने और कार्रवाई करने की शक्ति मिलने से प्रेस काउंसिल का अधिकार, स्वतंत्रता कम हो जाएगी, जो 1966 से सुचारू रूप से काम कर रही है.
पत्रकारों ने मांग की कि संसद परिसर और प्रेस गैलरी में मीडियाकर्मियों के प्रवेश पर लगा ई गई सभी रोक को तत्काल हटाया जाना चाहिए और उन्हें पेशेवर कर्तव्यों को पूरा करने की अनुमति दी जानी चाहिए. विपक्ष ने भी इन मांगों का समर्थन किया है. पिछले वर्ष कोविड-19 फैलने के बाद से संसद सत्र के दौरान सीमित संख्या में मीडियाकर्मियों को संसद परिसर में प्रवेश की अनुमति दी जा रही है.
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को पत्र लिखने वाले मीडिया संगठनों के प्रतिनिधियों में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस एसोसिएशन, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट और वर्किंग न्यूज़ कैमरामैन एसोसिएशन शामिल हैं.
गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों की ओर से निकाली गई ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के संबंध में असत्यापित ख़बरें शेयर करने के आरोप में कांग्रेस नेता शशि थरूर और राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय समेत छह पत्रकारों के ख़िलाफ़ विभिन्न राज्यों में राजद्रोह समेत विभिन्न धाराओं में केस दर्ज किए गए हैं.
प्रेस एसोसिएशन और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को ज्ञापन भेजा है. इनका कहना है कि पूछताछ के नाम पर दिल्ली के पुलिस थानों में पुलिस द्वारा घंटों इंतज़ार कराए जाने से उनका कामकाज बुरी तरह से प्रभावित होता है.
जम्मू कश्मीर में चार अगस्त की शाम से पाबंदियां लागू हैं. परेशान पत्रकारों ने अब मांग की है कि सरकार को कम से कम मीडिया संस्थानों के ब्रॉडबैंड कनेक्शन बहाल करने चाहिए.
प्रेस काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर राष्ट्रीय हितों का हवाला देते हुए जम्मू कश्मीर में मीडिया पर लगे प्रतिबंधों का समर्थन किया था.
जेएनयू छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों द्वारा शुक्रवार को निकाले गए मार्च के दौरान दिल्ली पुलिस पर मीडियाकर्मियों से मारपीट और छेड़छाड़ का आरोप लगा है.