इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड के एक अध्ययन में बताया गया है कि साल 2022 में पॉक्सो अधिनियम के तहत केवल 3% मामलों में सज़ा हुई थी. अध्ययन के अनुसार, देश में 1,000 से अधिक फास्ट-ट्रैक अदालतों में से प्रत्येक हर साल औसतन केवल 28 मामलों का निपटारा कर रही है, जो 165 के लक्ष्य से कहीं पीछे है.
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि राज्य में औसतन 31 प्रतिशत शादियां ‘निषिद्ध उम्र’ में होती हैं. कार्रवाई करने के संबंध में उन्होंने कहा कि यह दंडात्मक अभियान राज्य में उच्च मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से है. यह एक तटस्थ और धर्मनिरपेक्ष कार्रवाई होगी.
साल 2016 में बीकानेर के एक स्कूल की छात्रा के बलात्कार और मौत की घटना के बाद दो स्टाफ सदस्यों को इस अपराध को छिपाने का दोषी पाया गया था. अब राजस्थान हाईकोर्ट ने उनकी सज़ा रद्द करते हुए कहा कि वे 'लड़की की प्रतिष्ठा बचाने की कोशिश' कर रहे थे.
यह घटना साल 2018 की है. मुंबई की विशेष अदालत ने कहा कि घटना के समय पीड़ित की उम्र 13 साल थी और वह नियमित तौर पर बेस्ट बस से स्कूल जाती थी. उस समय आरोपी की उम्र 54 साल थी और उसने बच्ची से ऐसे शब्द कहे, जिससे उसके मन में इतना डर पैदा हो गया कि उसने बस से स्कूल जाने से इनकार कर दिया. इस तरह की घटनाएं बच्चियों के विकास में बाधा डालती हैं.
चेन्नई के एक अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स की घटना. मामले की सुनवाई के लिए ले जाते समय आरोपियों को वकीलों ने पीटा. कॉम्प्लेक्स के सिक्योरिटी गार्ड के अलावा लिफ्ट आॅपरेटर और पानी सप्लाई करने वाले 22 लोग हैं आरोपी.
आयोग का कहना है कि कठुआ गैंगरेप जैसे जघन्य मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान करने कि लिए पॉक्सो क़ानून में संशोधन होना चाहिए.