शब्द और विचार हर किस्म के कठमुल्लों को बहुत डराते हैं. विचारों से आतंकित लोगों ने अब शब्दों और विचारों के ख़िलाफ़ बंदूक उठा ली है.
वे हत्या के पक्ष में दलीलें देने लगे. वे हत्यारों को बधाइयां देने लगे. उन्होंने गौरी लंकेश की हत्या को सिर्फ जायज़ नहीं ठहराया. वे हत्या के बाद ठंडी पड़ चुकी उस लाश को गालियां देने लगे. जैसे वे उस पर और गोलियां चलाना चाहते हों.
भाजपा विधायक डीएन जीवराज ने कहा कि गौरी लंकेश जिस तरह लिखती थीं, वो बर्दाश्त के बाहर था. गौरी मेरी बहन जैसी हैं लेकिन जिस तरह उन्होंने लिखा, वो स्वीकार नहीं किया जा सकता.'
हमने बचपन से सुना था कि किसी की मौत के बारे में बुरा मत बोलो क्योंकि मरा आदमी अपनी सफाई नहीं दे सकता. पर ये लोग तो जैसे मरने का इंतज़ार कर रहे थे. ये कहां पले-बढ़े हैं, ये कहां से आते हैं?
जनता को नहीं पता होता कि उसके साथ सत्ता क्या कर रही है. ऐसे मेें ख़तरा उनसे होता है जो जनता से उनकी भाषा में सत्ता का सच बताते हैं. इसलिए उन्हें ख़ामोश करने की कोशिश की जाती है.
देश के विभिन्न राज्यों के पत्रकार संगठनों समेत आम नागरिकों ने इस जघन्य हत्या की निंदा की. अमेरिकी दूतावास और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी चिंता जताई.