अगम बहै दरियाव: जीवन की साधारणता का आख्यान

पुस्तक-समीक्षा: शिवमूर्ति के 'अगम बहै दरियाव' को आंचलिक उपन्यास के खांचे में रखकर देखना उसे न्यून करना होगा. इसे एक सामाजिक-राजनीतिक समझ पैदा करने वाला संवेदनशील उपन्यास माना जाना चाहिए, जिसे इसके नायकों- किसानों और मजदूरों, दलित-पिछड़ों-स्त्रियों- के त्रासद संघर्ष के रूप में पिरोकर बयां किया गया है.

मनुष्यता के पक्ष में होने की एक अनिवार्य शर्त प्रेम के पक्ष में होना है

पुस्तक समीक्षा: मंगलेश डबराल की 'प्रतिनिधि कविताएं' पढ़ते हुए लगता है मानो वे कह रहे हों कि ईमानदारी और मनुष्यता ख़ुद से बची रहने वाली चीज़ें नहीं हैं. वे इसे मनुष्य की अपने साथ एक लगातार चलने वाली जद्दोजहद मानते हैं.

‘निर्मल के अंदर कई सारे निर्मल रहते थे, उनकी जटिलता को उनके समय में रखकर ही देख सकते हैं’

निर्मल वर्मा की 96वीं जयंती पर उनकी असंकलित कहानियों के संग्रह ‘थिगलियाँ’ के लोकार्पण में उनकी जीवनसाथी गगन गिल ने कहा कि अच्छे लेखक की परतें उसके गुज़र जाने के कई वर्ष बीत जाने के बाद खुलती हैं.