अगर हिंदू जनता को यह यक़ीन दिलाया जा सकता है कि यह मंदिर उसकी चिर संचित अभिलाषा को पूरा करता है तो इसका अर्थ है कि हिंदू मन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पूरी तरह कब्ज़ा हो चुका है.
मस्जिद की विकास समिति के नए प्रमुख ने कहा है कि अब लक्ष्य भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक को ‘ताजमहल से भी बेहतर’ बनाने का है. उन्होंने कहा कि हम यह सुनिश्चित करेंगे कि अयोध्या, गंगा-जमुनी तहज़ीब का बेहतरीन उदाहरण बने. इस हद तक विज्ञापन करेंगे कि जो कोई भी राम मंदिर देखने आएगा, वह मस्जिद भी देखने यहां पहुंचेगा.
अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग नहीं लेने के अपने रुख़ को दोहराते हुए पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि राजनेताओं की अपनी सीमाएं हैं. धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में नियम और प्रतिबंध हैं, इनका पालन किया जाना चाहिए. नेताओं द्वारा हर क्षेत्र में हस्तक्षेप करना पागलपन है.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के महासचिव डी. राजा ने कहा है कि राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह एक सरकार-प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम है, जो लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा और आरएसएस द्वारा आयोजित किया जा रहा है. इन्हीं कारणों से कांग्रेस और माकपा ने भी इस समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया है.
गुजरात के द्वारका स्थित शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल न होने के पीछे विवादों और ‘धर्म विरोधी ताकतों’ के इससे जुड़े होने का हवाला दिया है. उन्होंने कहा कि चारों शंकराचार्यों को निमंत्रण मिला है, लेकिन कोई भी 22 जनवरी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए नहीं जा रहा है.
शैव-वैष्णव संघर्षों की समाप्ति के लिए गोस्वामी तुलसीदास द्वारा राम की ओर से दी गई ‘सिवद्रोही मम दास कहावा, सो नर सपनेहुं मोंहि न पावा’ की समन्वयकारी व्यवस्था के बावजूद चंपत राय का संन्यासियों, शैवों व शाक्तों के प्रति प्रदर्शित रवैया हिंदू परंपराओं के प्रति उनकी अज्ञानता की बानगी है.
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22 जनवरी को होने वाले अयोध्या के राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से पहले संत समाज का एक वर्ग क्यों रुष्ट हो गया है?
एक हिंदुत्व समर्थक पोर्टल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चारों शंकराचार्य राजनीतिकरण, उचित सम्मान न मिलने और समयपूर्व किए जा रहे प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को लेकर नाराज़ हैं. इसके अनुसार, शंकराचार्यों का कहना है कि राम मंदिर के निर्माण को क्रियान्वित करने के बावजूद सरकार ‘राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू भावनाओं का शोषण कर रही है’.
तुलसीदास रामचरितमानस में कहते हैं कि राम के बारे में अब तक जो कुछ भी लिखा-पढ़ा या सुनाया गया है, वह लिखने-पढ़ने-सुनाने वालों की ‘स्वमति अनुसार’ ही है- आधिकारिक या प्रामाणिक नहीं. ऐसी कोई ‘स्वमति’ कुमति में बदल जाए तो उससे किसी भी सभ्य तर्क की कसौटी पर खरी उतरने की अपेक्षा नहीं की जा सकती.
वीडियो: अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ समारोह को लेकर हो रही राजनीति और इस मंदिर की पृष्ठभूमि को लेकर चर्चा कर रहे हैं द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद.
अयोध्या की सभा असत्य और अधर्म की नींव पर निर्मित हुई है, क्योंकि जिसे इसके दरबारीगण सत्य की विजय कहते हैं, वह दरअसल छल और बल से उपजी है. अदालत के निर्णय का हवाला देते हुए ये दरबारी भूल जाते हैं कि इसी अदालत ने छह दिसंबर के अयोध्या-कांड को अपराध क़रार दिया था.
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बिलक़ीस बानो की जीत भारत की उन महिलाओं और मर्दों को शर्मिंदा करती है जो इस केस पर इसलिए चुप हो गए क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी से सवाल करना पड़ता, उन्हें भाजपा से सवाल करना पड़ता.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि धर्म मनुष्य का व्यक्तिगत विषय होता आया है, पर भाजपा और आरएसएस ने वर्षों से अयोध्या में राम मंदिर को एक राजनीतिक परियोजना बना दिया है. एक अर्द्धनिर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए ही किया जा रहा है.