सामूहिक हिंसा या घृणा के अलावा बिना किसी संगठन के भी ढेरों हिंदुओं में दूसरों के प्रति घृणा ज़ाहिर करने का लोभ अश्लीलता के स्तर तक पहुंच गया है. इन हिंदुओं के बीच ऐसे ‘कुशल’ वक्ताओं की संख्या बढ़ रही है जो खुलेआम हिंसा का प्रचार करते हैं. वक्ताओं के साथ उनके श्रोताओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है.
जो भारत अब तक बना था, जिसे हम यहां की प्रकृति और किताबों में पढ़ते थे ऐसा लगता है कि वह ‘आज़ादी के अमृत काल’ में विष के समुद्र में लगातार धकेला जा रहा है.
हमारी दुनिया में कितनी भी मायूसी हो, चाहे जितनी भी नफ़रत पैदा की जा रही हो, उम्मीद और प्रेम के उजालों में चलकर ही कहीं पहुंचा जा सकता है.
देश में जहां एक तरफ नफ़रत के पैरोकार सांप्रदायिकता की खाई गहरी करने के फेर में हैं, वहीं उनकी भड़काने और उकसाने की तमाम कोशिशों के बावजूद आम देशवासी सांप्रदायिक आधार पर एक दूजे के खून के प्यासे नहीं हो रहे, बल्कि उनके मंसूबों को समझकर जीवन के नए समतल तलाशने की ओर बढ़ने लगे हैं.
बीरभूम में टीएमसी के ज़िलाध्यक्ष ने कहा कि राज्य में इमामों-मुअज्जिनों को सरकार की ओर से भत्ता मिलता है. इस सूची में पुजारियों को शामिल कर संतुलन बनाने का प्रयास किया जा रहा है.
रामकथा का रिश्ता लोकमानस से है, उसके सुख-दुःख, आस-निरास से है. ऐसे में ‘रामकथा क्या है’ जैसे प्रश्न का उत्तर किताबों से ज्यादा लोक व्यवहारों में खोजा जाना चाहिए.