‘ह्वाइल वी वॉच्ड’ लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्ष में खड़े एक निहत्थे पत्रकार की वेदना है

‘ह्वाइल वी वॉच्ड’ डॉक्यूमेंट्री घने होते अंधेरों की कथा सुनाती है कि कैसे इसके तिलस्म में देश का लोकतांत्रिक ढांचा ढहता जा रहा है और मीडिया ने तमाम बुनियादी मुद्दों और ज़रूरी सवालों की पत्रकारिता से मुंह फेर लिया है.

‘उमर ख़ालिद द्वारा जेल में बिताए गए 1,000 दिन, प्रतिरोध के दिन हैं’

जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद ने वर्ष 2020 में उत्तर पूर्व दिल्ली में भड़के दंगों से जुड़े एक मामले में जेल में 1,000 दिन पूरे कर लिए हैं. ख़ालिद को दिल्ली पुलिस द्वारा सितंबर 2020 में गिरफ़्तार किया गया था और उन पर यूएपीए और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं.

चिड़िया को उसका घोंसला नज़र नहीं आ रहा है, पर उसके सामने खुला आसमान ज़रूर है: रवीश कुमार

अडानी समूह द्वारा एनडीटीवी में हिस्सेदारी खरीदने के बाद एनडीटीवी इंडिया के समूह संपादक रवीश कुमार ने इस्तीफ़ा देते हुए कहा कि जनता को चवन्नी समझने वाले जगत सेठ हर देश में हैं. अगर वो दावा करें कि वे  सही सूचनाएं देना चाहते हैं, तो अर्थ है कि वो अपनी जेब में डॉलर रखकर आपकी जेब में चवन्नी डालना चाहते हैं.

सीएबी: पूर्वोत्तर में विरोध प्रदर्शनों के कारण भारत, जापान द्विपक्षीय वार्ता स्थगित

नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में असम सहित पूर्वोत्तर में प्रदर्शन जारी है. असम में कर्फ्यू की सीमा बढ़ा दी गई है और झड़पें जारी हैं.

रात भर पेड़ों की हत्या होती रही, रात भर जागने वाली मुंबई सोती रही

यह न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है. मामला सुप्रीम कोर्ट में था तो कैसे पेड़ काटे गए? नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में मामला था तो पेड़ कैसे काटे गए? क्या अब से फांसी की सज़ा हाईकोर्ट के बाद ही दे दी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट में अपील का कोई मतलब नहीं रहेगा? वहां चल रही सुनवाई का इंतज़ार नहीं होगा?

ख़बरनवीस ख़ुद ख़बर बन जाए यह बिरले होता है

किसी एक पत्रकार को तब कितना अकेलापन लगता होगा जब उसके सारे हमपेशा ख़ुद को राष्ट्रनिर्माता या राष्ट्ररक्षक मान बैठे हों! रवीश कुमार इसी बढ़ते अकेलेपन के बीच उसी को अपनी शक्ति बनाकर काम करते रहे.

पत्रकार रवीश कुमार को मिला 2019 का रेमन मैग्सेसे पुरस्कार

एशिया का नोबेल माना जाने वाला मैग्सेसे पुरस्कार रवीश कुमार को पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए दिया गया है. अवॉर्ड फाउंडेशन ने उनके कार्यक्रम को आम लोगों से जुड़ा बताते हुए कहा कि अगर आप बेआवाज़ों की आवाज़ बनते हैं, तब आप एक पत्रकार हैं.

पुण्य प्रसून वाजपेयी को मिला नोटिस जनता के जानने के अधिकार पर एक और गहरा वार है

आखिर क्या बात है कि खेती-किसानी हो, अर्थव्यवस्था के दूसरे हिस्से हों, विश्वविद्यालय हों या स्कूल, हिंदी अख़बारों या चैनलों से हमें न तो सही जानकारी मिलती है, न आलोचनात्मक विश्लेषण? क्यों सारे हिंदी जनसंचार माध्यम सरकार की जय-जयकार में जुट गए हैं?

पत्रकार रवीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए भाषण लिखा है, क्या वे इसे पढ़ सकते हैं?

भाजपा की सरकार ने उच्च शिक्षा पर उच्चतम पैसे बचाए हैं. हमारा युवा ख़ुद ही प्रोफेसर है. वो तो बड़े-बड़े को पढ़ा देता है जी, उसे कौन पढ़ाएगा. मध्य प्रदेश का पौने छह लाख युवा कॉलेजों में बिना प्राध्यापक, सहायक प्राध्यापक के ही पढ़ रहा है. हमारा युवा देश मांगता है, कॉलेज और कॉलेज में टीचर नहीं मांगता है.

ये चुप्पी मीडिया नहीं, ‘पपी मीडिया’ है, जो सरकार के फेंके गए टुकड़ों पर पल रहा है

हिंदू-मुसलमान का एक्शन, ‘हिंदू खतरे में है’ का नाच, जेएनयू पर डायलॉग, संसद का सास-बहू, लव जिहाद का धोखा... पूरा देश समाचारों में एकता कपूर के सीरियल देख रहा है, वहीं भुखमरी, किसान आत्महत्या, बलात्कार, बेरोज़गारी, निर्माण और उत्पादकता का विनाश, महिला और दलित उत्पीड़न के बारे में नज़र आती है तो केवल... चुप्पी.

देश में बीते चार साल का इतिहास चुनावी जीत के साथ चुनावी झूठ का भी है

गुजरात में विधानसभा चुनाव के वक़्त नर्मदा के पानी को लेकर जनता को सपने दिखाए गए लेकिन अब गर्मी आने से पहले सरकार ने कह दिया है कि सिंचाई के लिए जलाशय का पानी नहीं मिलेगा.

बिहार में शराबबंदी नहीं, ग़रीबबंदी हो रही है

बिहार में शराब पीने के जुर्म में तकरीबन एक लाख लोग गिरफ़्तार किए गए होंगे. राज्य की अदालतों और जेलों में क्या आलम होगा, आप अंदाज़ा कर सकते हैं. एक लाख लोग किसी एक जुर्म में जेल में बंद हों यह सामान्य नहीं हैं.

नीरव मोदी भले ही नरेंद्र मोदी न हो, मगर नरेंद्र मोदी की जांच एजेंसियों से नहीं डरता है

नीरव मोदी जी, भारत आने से न डरें. आपकी रिश्तेदारी ही इस कमाल की है कि हाथ लगाने में हुज़ूर के हाथ कांप जाएंगे.

तू इधर-उधर की बात मत कर, ये बता नीरव ने कारवां कैसे लूटा

गीतांजलि ग्रुप के प्रमुख मेहुल चौकसी हैं जिनका नाम साल 2015 में मुंबई में सोने का सिक्का लॉन्च करते हुए प्रधानमंत्री बड़े प्यार से ले रहे थे, ‘हमारे मेहुल भाई यहां बैठे हैं.’ अभी तक प्रधानमंत्री के ये ‘हमारे मेहुल भाई’ गिरफ़्तार नहीं हुए हैं.