याचिकाकर्ता ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत गुजरात हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश की नियुक्ति और वेतन-भत्तों से संबंधित जानकारी मांगी थी. गुजरात सूचना आयोग ने जानकारी को उपलब्ध कराए जाने योग्य माना था, लेकिन हाईकोर्ट ने आयोग के फैसले को रद्द कर दिया.
एक याचिकाकर्ता ने दिसंबर 2019 में सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन की अनुमति मांगी थी, जिससे गुजरात पुलिस ने इनकार कर दिया. तब उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत उन नियमों को प्रकाशित करने के लिए कहा, जो पुलिस को प्रदर्शन या रैलियां करने की अनुमति देने या अस्वीकार करने का अधिकार देते हैं. हालांकि उनके आवेदन को गुजरात पुलिस द्वारा ख़ारिज कर दिया गया था.
केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बीते दिनों राज्यसभा में कहा था कि 2022-23 के दौरान 15 दिसंबर तक सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत दायर 20,756 शिकायतों और दूसरी अपीलों का निपटारा किया गया.
मध्य प्रदेश के विदिशा ज़िले में बीते 2 जून को आरटीआई कार्यकर्ता रंजीत सोनी की लोक निर्माण विभाग कार्यालय में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. एक फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट में पता चला है कि रंजीत सरकारी ठेकों, अधिकारियों की नियुक्तियों और उनके ठेकेदारों से संबंधों आदि में व्याप्त भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आरटीआई के माध्यम से लगातार सक्रिय थे और इसलिए उन्हें धमकियां मिल रही थीं और उन पर पहले भी हमले हो चुके थे.
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, कोरोना महामारी के दौरान 2020-21 में क़रीब 2.5 करोड़ रुपये पूर्व और मौजूदा सांसदों की इस तरह की यात्राओं पर ख़र्च हुए हैं. इस दौरान रेलवे ने वरिष्ठ नागरिकों समेत विभिन्न श्रेणी के यात्रियों को दी जाने वाली कई छूट पर रोक लगा दी थी, जिससे कुछ तबकों में नाराज़गी है. वरिष्ठ नागरिकों को दी जाने वाली सब्सिडी ख़त्म करने के क़दम की भी आलोचना हुई है.
मुख्य सूचना आयुक्त यशोवर्धन कुमार सिन्हा ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के उपसचिव और सीपीआईओ प्रवीण कुमार यादव को चेतावनी देते हुए उन्हें भविष्य में आरटीआई एक्ट के प्रावधानों का सख़्ती से पालन सुनिश्चित करने को कहा.
मोतीहारी के आरटीआई कार्यकर्ता बिपिन अग्रवाल की बीते वर्ष सितंबर माह में हत्या कर दी गई थी. पिता की हत्या की जांच में देरी के चलते उनके बेटे ने बीते माह कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी. आरटीआई का समर्थन करने वाली एक राष्ट्रीय संस्था ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर मामले की जांच किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश से कराने की मांग की है.
सीआईसी ने दिसंबर 2021 में हॉकी इंडिया को आरटीआई के तहत उसके सदस्यों की पूरी सूची, उनके पदनाम, वेतन, सकल आय जैसी कई जानकारियां देने के निर्देश दिए थे, जिसे उसने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. कोर्ट ने कहा कि वह एक सार्वजनिक प्राधिकरण है और ऐसी जानकारी देने से मना नहीं कर सकता.
राष्ट्रपति ने सीबीआई और ईडी प्रमुखों का कार्यकाल विस्तार दो साल से बढ़ाकर पांच साल करने वाले अध्यादेशों को 14 नवंबर को मंज़ूरी दी थी. राष्ट्रपति सचिवालय ने आरटीआई के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में यह जानकारी मुहैया कराने से इनकार कर दिया कि आख़िर ये अध्यादेश किस आधार पर लाए गए थे.
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में बताया कि 2021-22 में छह दिसंबर 2021 की स्थिति के अनुसार 32,147 आरटीआई अनुरोध लंबित थे. इससे पहले सतर्क नागरिक संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि केंद्रीय सूचना आयोग में अपील/शिकायत के निपटारे के लिए औसतन एक साल 11 महीने का समय लग रहा है.
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त कहा है कि गै़र सहायता प्राप्त निजी स्कूल आरटीआई अधिनियम के दायरे में होने चाहिए, क्योंकि इससे उत्तर प्रदेश में निजी शिक्षण संस्थानों से जानकारी लेने में छात्रों और अभिभावकों को फ़ायदा होगा. उन्होंने मुख्य सचिव से सिफ़ारिश की कि सार्वजनिक सूचना के महत्व को देखते हुए निजी स्कूल प्रशासकों को आरटीआई के तहत जन सूचना अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया जाए.
मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर के एक मेडिकल कॉलेज का मामला. आरटीआई कार्यकर्ता ग्वालियर स्थित गजरा राजा मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस प्रवेश में कथित विसंगतियों की जांच चाहते हैं कि बाहरी लोगों ने धोखाधड़ी करके स्थानीय निवासियों के कोटे में प्रवेश हासिल कर लिया है.
एक आरटीआई कार्यकर्ता ने केंद्रीय सूचना आयोग की वार्षिक रिपोर्ट का विश्लेषण करने के बाद बताया कि आरटीआई आवेदनों को इस क़ानून की धाराओं आठ, नौ, 11 और 24 के तहत प्राप्त छूट से ही ख़ारिज किया जाना मान्य है, लेकिन रिपोर्ट दर्शाती है कि सरकारी विभागों ने आवेदनों को ख़ारिज करने के लिए ‘अन्य’ श्रेणी का इस्तेमाल किया.
पांच जनवरी को गुजरात के मुख्य सूचना आयुक्त ने भावनगर ज़िले के स्वास्थ्य विभाग के जन सूचना अधिकारियों को निर्देश जारी कर कहा था कि वे अगले पांच साल तक तीन लोगों, जो कि एक ही परिवार के हैं, से आरटीआई एक्ट के तहत आवेदन या अपील स्वीकार न करें.
हाईकोर्ट की यह टिप्पणी आरटीआई एक्ट के उस प्रावधान के बिल्कुल विपरीत है, जिसमें कहा गया है कि सूचना मांगने के लिए आवेदक को कोई कारण बताने की ज़रूरत नहीं है.