सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल याचिका में कहा गया कि ग़रीब पृष्ठिभूमि की 11 से 18 साल की छात्राओं को शिक्षा हासिल करने में गंभीर समस्या का सामना करना पड़ता है. मासिक धर्म के बारे में व्याप्त मिथक के कारण लाखों लड़कियों को या तो जल्द ही स्कूल छोड़ना पड़ता है या फिर इस अवधि के दौरान उन्हें अलग-थलग रहना पड़ता है.
दिल्ली के एक एनजीओ की 'रैप्ड इन सीक्रेसी' नाम की यह रिपोर्ट भारतीय बाजार में व्यापक तौर पर बिकने वाले दस तरह के सैनिटरी पैड पर किए गए टेस्ट पर आधारित है.
31 सदस्यीय जीएसटी परिषद में एक भी महिला सदस्य न होने पर भी अदालत ने नाराज़गी जाहिर की.
नई कर व्यवस्था में सैनिटरी नैपकिन को 12 प्रतिशत कर दर के दायरे में रखा गया है.