रीवा ज़िले का मामला. गणतंत्र दिवस के दिन एक सरकारी स्कूल में ध्वजारोहण समारोह के बाद बच्चों को पूड़ी-सब्जी और लड्डू परोसे गए थे, जिसे खाने के बाद कइयों की तबियत बिगड़ने लगी. सीएमएचओ ने कहा है कि खाद्य सामग्री का सैंपल लेकर जांच करवाई जाएगी, जिसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी.
छत्तीसगढ़ के मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी ज़िले का मामला. पुलिस ने बताया कि करेकट्टा गांव के सरकारी प्राथमिक स्कूल में संविदा के आधार पर नियुक्त गेस्ट शिक्षक पर पिछले साल सितंबर में इलाके में माओवादी बैनर और पोस्टर लगाने में शामिल होने का आरोप है. पूछताछ में उन्होंने इस बात को स्वीकार किया है.
वित्त मंत्रालय ने बजट से पहले पेश किए गए वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण में कहा कि बार-बार लगाए गए लॉकडाउन ने शिक्षा के क्षेत्र को काफ़ी प्रभावित किया है और इसके वास्तविक प्रभाव को आंकना मुश्किल है, क्योंकि इस बारे में उपलब्ध व्यापक आधिकारिक आंकड़े 2019-20 से पहले के हैं.
छत्तीसगढ़ के लिए शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट-2021 के अनुसार 2020 में महामारी फैलने के बाद स्कूल बंद होने से बच्चों सीखने की क्षमता को बहुत गंभीर नुकसान हुआ है, जहां शुरुआती कक्षाओं में वर्णमाला के अक्षरों को भी पहचानने में असमर्थ छात्रों का प्रतिशत 2018 की तुलना में 2021 में दोगुना हो गया है.
ओडिशा के बरगढ़ और ढेंकनाल जिले का मामला. ढेंकनाल के कानपुरा में पंचायती राज हाईस्कूल में कोरोना के 20 मामले सामने आए, जिनमें 14 छात्र हैं. इस स्कूल को सात दिनों के लिए बंद कर दिया गया है. बरगढ़ में भी इसी स्कूल के 19 छात्र कोरोना संक्रमित पाए गए हैं.राज्य में 26 जुलाई से 10वीं और 12वीं के लिए और 16 अगस्त से कक्षा नौंवी के लिए स्कूलों को दोबारा खोल दिया गया था.
मणिपुर के मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम में घुटनों पर झुके स्कूली बच्चों को देखकर विचार आता है कि आज वरिष्ठों के सामने सजदे में खड़े होने के लिए मजबूर करने वाला वातावरण उन्हें सवाल करने के लिए तैयार करेगा या सब चीज़ें चुपचाप स्वीकार करने के लिए?
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुतारेस ने कहा कि प्रारंभिक से उच्च माध्यमिक स्तर तक के क़रीब 2.38 करोड़ बच्चे और युवा केवल महामारी के आर्थिक असर की वजह से अगले साल पढ़ाई छोड़ सकते हैं या उससे वंचित रह सकते हैं.
नीति आयोग ने सिफारिश की है कि इस बात संभावना तलाशनी चाहिए कि क्या निजी क्षेत्र प्रति छात्र के आधार पर सार्वजनिक वित्त पोषित सरकारी स्कूल को अपना सकते हैं.
परिवार की खराब आर्थिक स्थिति, घर में भाई या बहनों की देखरेख और पलायन की वजह से राज्य के इन बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ा.