कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: जिसे कोई रचना पढ़ते हुए कोई और रचना, अपना कोई अनुभव, कोई भूली-बिसरी याद न आए वह कम पढ़ रहा है. पाठ किसी शून्य में नहीं होता और न ही शून्य में ले जाता है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: जिसे कोई रचना पढ़ते हुए कोई और रचना, अपना कोई अनुभव, कोई भूली-बिसरी याद न आए वह कम पढ़ रहा है. पाठ किसी शून्य में नहीं होता और न ही शून्य में ले जाता है.