निर्मम बलात्कार या यौन अपराधों के कई मामलों में अपराधी का पॉर्न देखने का आदी होना बड़ी वजह बनकर सामने आया है. पॉर्न देखने के मामले में भारत विश्व में तीसरे नंबर पर है, जिसमें 48% दर्शक युवा है. ऐसे में ज़रूरी है कि किशोर होते बच्चों को स्कूलों और सामुदायिक स्तर पर 'पॉर्न की सच्चाई’ को लेकर शिक्षित किया जाए.
आरएसएस से जुड़े संगठन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का कहना है कि स्कूलों में यौन शिक्षा देने से बच्चों पर नकारात्मक असर पड़ेगा. संगठन ने सेक्स शब्द पर भी आपत्ति जताई.
यह ‘अच्छे स्पर्श’ और ‘बुरे स्पर्श’ की सरलीकृत बायनरी से आगे बढ़ने का वक़्त है. बच्चों के लिए न विशेष अदालतें हैं, न काउंसलिंग के इंतज़ाम हैं, न ही सुरक्षित वातावरण जिसमें वह पल-बढ़ सकें.
पलायमकोट्टाई की 12 वर्षीय स्कूली छात्रा ने सुसाइड नोट में पीरियड्स के दाग को लेकर टीचर द्वारा पूरी क्लास के सामने अपमानित किए जाने की बात लिखी है.