भीषण गर्मी कमज़ोर वर्ग को असमान रूप से प्रभावित करती है. ग़रीब श्रमिक के पास न तो आराम या सुकून का समय ही उपलब्ध हैं न ही चिकित्सा सुविधाएं. निर्माण और कृषि श्रमिकों तो खुले में श्रम और ऊंचे तापमान के लंबे समय तक संपर्क में होता है, ऐसे में उनके लिए भीषण गर्मी जानलेवा भी हो सकती है.
गैर सरकारी संगठन ‘सेव द चिल्ड्रन’ द्वारा पिछले साल फरवरी में दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार और तेलंगाना की शहरी झुग्गियों में किए गए सर्वेक्षण अनुसार, कोविड-19 महामारी के कारण 2020 में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान 67 प्रतिशत लड़कियां ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हुईं. अध्ययन में यह भी पाया गया है कि 10 से 18 वर्ष के बीच की 68 प्रतिशत लड़कियों ने इन राज्यों में स्वास्थ्य और पोषण सुविधाएं पाने में चुनौतियों का सामना किया.
चित्रकथा: जहां मुंबई के सुविधा-संपन्न नागरिकों को पानी रियायती दरों पर मिलता है वही, झुग्गी-बस्तियों में रहने वालों को आज भी पानी के लिए दरबदर भटकना पड़ता है.
वैश्विक महामारी दौर में केंद्रीय बजट के बाद शहरों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था जिसमें शब्दों के परे ऐतिहासिक करने का अवसर था. शहरी ग़रीबों को लगा था कि यह बजट उनका होगा, लेकिन कुछ घोषणाओं व शब्दों के खेल के अलावा बजट में महत्वपूर्ण रूप से उनकी बात नहीं हो पाई.
बीते 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में दिल्ली में लगभग 140 किलोमीटर लंबे रेलवे ट्रैक के आसपास में फैली क़रीब 48,000 झुग्गी-झोपड़ियों को तीन महीने के भीतर हटाने का आदेश दिया था.
ग्राउंड रिपोर्ट: दिल्ली विकास प्राधिकरण ने एनजीटी के आदेश पर बीते 24 सितंबर को ओखला के धोबीघाट के पास करीब ढाई एकड़ में बसी झुग्गियों को तोड़कर सैकड़ों लोगों को बेघर कर दिया.