वे सभी लोग जो नए कलेवर में प्रस्तुत संघ को लेकर प्रसन्न हो रहे हैं, उन्हें यह जानना होगा कि यह कोई पहली बार नहीं है जब संघ इस क़वायद में जुटा है. उन्हें 1977 के अख़बारों को पलट कर देखना चाहिए जब यह बात फैलाई जा रही थी कि संघ अब अपनी कतारों में मुसलमानों को भी शामिल करेगा. लेकिन यह शिगूफ़ा साबित हुआ.
संवाद का भ्रम रचकर बहुत कुछ हासिल करने की संघ की ताज़ा महत्वाकांक्षा की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि वह अपने घर का दरवाज़ा चौड़ा और ऊंचा करने को तैयार नहीं है.