केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बीते दिनों राज्यसभा में कहा था कि 2022-23 के दौरान 15 दिसंबर तक सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत दायर 20,756 शिकायतों और दूसरी अपीलों का निपटारा किया गया.
आरटीआई क़ानून की 16वीं वर्षगांठ के मौक़े पर एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर ने कहा कि एक लोकतांत्रिक गणराज्य के कामकाज के लिए सूचना महत्वपूर्ण है. इसका उद्देश्य सुशासन, पारदर्शिता व जवाबदेही को स्थापित करना है. पीएम केयर्स फंड का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इस पर आरटीआई एक्ट लागू न होने के चलते नागरिकों को पता ही नहीं है कि इसका पैसा कहां जा रहा है.
आरटीआई क़ानून की 16वीं वर्षगांठ के मौके पर पारदर्शिता की दिशा में काम करने वाले संगठनों सतर्क नागरिक संगठन और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट इस क़ानून के कार्यान्वयन की दयनीय तस्वीर पेश करते हैं. आलम ये है कि देश के 26 सूचना आयोगों में 2,55,602 अपील तथा शिकायतें लंबित हैं. इसमें कहा गया है कि आने वाले वर्षों में सबसे बड़ी चुनौती सूचना चाहने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है.
सतर्क नागरिक संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक 11 सूचना आयोगों की वेबसाइट पर लॉकडाउन में कामकाज के संबंध में कोई भी नोटिफिकेशन उपलब्ध नहीं था. बिहार, मध्य प्रदेश और नगालैंड राज्य सूचना आयोगों की वेबसाइट ही काम नहीं कर रही थी.
कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के टेलिफोनिक सर्वे में ये जानकारी सामने आई है कि देश के अधिकतर सूचना आयोग एकाध स्टाफ के सहारे काम कर रहे हैं. अधिकतर आयोगों के ऑफिस नंबर या हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करने पर किसी ने जवाब नहीं दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना, गुजरात, केरल और कर्नाटक की सरकारों को चार हफ़्ते में जवाब देने का निर्देश दिया.