आंध्र प्रदेश, बॉम्बे, कलकत्ता, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, कर्नाटक और मणिपुर की उच्च अदालतें बगैर किसी नियमित मुख्य न्यायधीश के काम कर रही हैं.
कुछ लोकसभा सदस्यों ने विधेयक पर आपत्ति जताई लेकिन उन्हें ख़ारिज करते हुए सरकार ने कहा कि यह विधेयक संविधान के बुनियादी ढांचे के तहत है.
देश में अपने तरह के पहले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश को अवमानना मामले में छह महीने की सज़ा सुनाई थी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश, क़ानूनी प्रावधानों और विधि आयोग की सिफ़ारिशों के बाद भी ज़मानत पा चुके क़ैदी जेल में हैं, यह दुखद है.
प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देते हुए कहा, उनका बेटा एक निजी फर्म में कार्यरत है जिसकी सीबीआई जांच कर रही है.
पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण बता रहे हैं कि 10 नवंबर को मुख्य न्यायाधीश की अदालत में जो हुआ, वह सर्वोच्च न्यायालय और भारत की न्यायपालिका के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े करता है.
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण द्वारा दायर याचिका में मांग किया गया है कि आस्थाना के खिलाफ सीबीआई द्वारा एक जांच को पूरा होने तक उन्हें विभाग से बाहर रखा जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा हाईकोर्ट के उस फैसले को भी रद्द कर दिया जिसमें टेक्निकल कोर्स को पत्राचार के माध्यम से करने की अनुमति दी गई थी.
केंद्र ने कोर्ट में कहा, दोषी नेताओं पर उम्र भर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध विचार योग्य नहीं, चुनाव आयोग दोषी विधायकों सांसदों पर आजीवन प्रतिबंध के पक्ष में.
आधार को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने लिए अनिवार्य करने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ याचिकाओं पर सुनवाई के लिए अदालत ने संवैधानिक पीठ गठित करने का फ़ैसला किया है.
राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने का अनुरोध उन्हें जवाबदेह बनाने और चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए किया गया है.
नीट परीक्षा के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली दलित छात्रा अनीता ने 1 सितंबर को कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी.
अनीता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर तमिलनाडु को नीट परीक्षा से छूट दिए जाने की मांग की थी.
गुजरात हाईकोर्ट ने दंगों के दौरान क्षतिग्रस्त हुए धार्मिक स्थलों के पुनर्निमाण एवं मरम्मत के लिए राज्य सरकार को पैसों के भुगतान करने के लिए कहा था.
पितृसत्ता का प्रभाव देश के ज़्यादातर नागरिकों पर ही नहीं, बल्कि सरकार, प्रशासन और न्यायपालिका जैसे संस्थान भी इसके असर से बचे हुए नहीं हैं, जिन पर लैंगिक न्याय स्थापित कराने का दायित्व है.