गुजरात के सूरत का मामला. सूरत नगर निगम द्वारा वलसाड सिविल अस्पताल से 20 से अधिक वेंटिलेटर कथित तौर पर कचरा उठाने वाले वाहन से एसएमआईएमईआर अस्पताल ले जाया गया था.
घटना सूरत से करीब 60 किलोमीटर दूर कोसांबा गांव के पास मंगलवार तड़के हुई, जहां एक ट्रैक्टर से टकराने के बाद बेक़ाबू हुआ ट्रक फुटपाथ पर सो रहे मज़दूरों पर चढ़ गया. मारे गए सभी मज़दूरों में से एक को छोड़कर बाकी सभी राजस्थान के रहने वाले थे.
गुजरात हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कोरोना वायरस की ख़राब स्थिति को देखते हुए राज्य को अपनी पूरी मशीनरी को दुरुस्त करने की ज़रूरत है. साथ ही अदालत ने राज्य के सभी सिविल अस्पतालों से भी मौजूदा स्थिति को लेकर विस्तृत रिपोर्ट भी पेश करने को कहा है.
घटना सूरत के एसएमआईएमईआर अस्पताल का है. परिवार का आरोप है कि अस्पताल ने महिला को इलाज के दौरान ही डिस्चार्ज कर दिया. वहीं अस्पताल का कहना है कि इस घटना में उनकी कोई ग़लती नहीं है.
गुजरात के सूरत में नगर निगम द्वारा जारी दिशानिर्देशों में कहा गया है कि टेक्सटाइल बाज़ार के कर्मचारी और कामगार काम के दौरान प्रेरक नारे जैसे ‘हारेगा कोरोना, जीतेगा सूरत’ और ‘एक लक्ष्य हमारा है, कोरोना को हराना है’ गाना जारी रखेंगे.
लॉकडाउन के दौरान बीते 17 मई को गुजरात के राजकोट में प्रवासी मज़दूरों का एक समूह पुलिस से भिड़ गया था. ये समूह अपने गृह राज्य जाने के लिए ट्रेनों में जगह देने की मांग कर रहा था. पुलिस ने मज़दूरों के ख़िलाफ़ हत्या के प्रयास, डकैती समेत अन्य आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज की थी.
यह मामला सूरत का है. कोरोना संक्रमित होने के शक़ में स्थानीय लोगों ने प्रवासी कामगार की लाठी और डंडों से पिटाई कर दी और मकान ख़ाली कर जाने को कहा. तीन लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज़ कर उनकी तलाश की जा रही है.
मामला गुजरात के सूरत का है. पुलिस ने बताया कि 23 वर्षीय संगम झा और 30 वर्षीय सुजीत सिंह मोटरसाइकिल से घर लौटने के दौरान रास्ता भटक गए और भेस्तान इलाके में घुस गए. स्थानीय लोग चोर समझकर लाठी और लोहे की रॉड से उन्हें पीटने लगे जिसमें संगम की मौके पर ही मौत हो गई जबकि सुजीत की हालत गंभीर है.
इससे पहले कोरोना वायरस को लेकर हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि सरकार द्वारा संचालित अहमदाबाद सिविल अस्पताल की हालत दयनीय और कालकोठरी से भी बदतर है. बदलाव के बाद पीठ ने नाराज़गी ज़ाहिर की कि महामारी से निपटने को लेकर सरकार के बारे में की गईं अदालत की हालिया टिप्पणियों का ग़लत मंशा से दुरुपयोग किया गया.
कोरोना महामारी को लेकर अस्पतालों की दयनीय हालत और राज्य की स्वास्थ्य अव्यस्थताओं पर गुजरात सरकार को फटकार लगाने वाली हाईकोर्ट की पीठ में अचानक बदलाव किए जाने से एक बार फिर 'मास्टर ऑफ रोस्टर' की भूमिका सवालों के घेरे में है.
गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस जेबी पर्दीवाला और इलेश जे. वोरा की पीठ ने बीते दिनों कोरोना महामारी को लेकर राज्य सरकार को सही ढंग और जिम्मेदार होकर कार्य करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए थे.
पिछले दो सप्ताह से सोशल मीडिया पर प्रसारित की जा रही एक विस्तृत 22 सूत्रीय रिपोर्ट में कहा गया है कि अहमदाबाद के अस्पतालों में आवश्यक दवाओं की भारी कमी है.
गुजरात देश में सबसे ज्यादा कोरोना मौतों वाले राज्यों में से एक है, जिसमें से सिविल अस्पताल में 377 मौतें हुई हैं जो कि राज्य की कुल मौतों का लगभग 45 फीसदी है.
गुजरात सरकार ने अदालत में कहा कि राज्य में लगभग 22.5 प्रवासी कामगार हैं और इसमें सिर्फ 7,512 श्रमिक पंजीकृत हैं, इसलिए बाकी लोगों का किराया नहीं दिया जा सकता है.
गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को याद दिलाया कि राज्य प्रशासन की ये जिम्मेदारी है कि वे सुनिश्चित करें कि उनके नागरिक भूखे न रहें. गुजरात के सूरत शहर में घर भेजे जाने की मांग को लेकर मजदूर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.