कोविड-19 संक्रमण की आपराधिक जवाबदेही तबलीग़ी जमात के माथे ही क्यों है?

डब्ल्यूएचओ कहता है कि नागरिकों का स्वास्थ्य सरकारों की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है. लेकिन भारत सरकार के यात्राओं पर प्रतिबंध, हवाई अड्डों पर सबकी स्क्रीनिंग के निर्णय में हुई देरी पर बात नहीं हुई, न ही कोविड जांच की बेहद कम दर की बात उठी. जमात ने ग़लती की है पर क्या सरकारों को कभी उनकी नाकामियों के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा?

मध्य प्रदेश में इंदौर के कोरोना का केंद्र बनकर उभरने की वजह क्या है?

कोरोना संक्रमितों की संख्या के लिहाज़ से महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली के बाद चौथा नंबर मध्य प्रदेश का है, जहां तीन चौथाई मामले केवल दो ज़िलों- इंदौर और भोपाल में सामने आए हैं. इसमें भी लगभग 60 फीसदी मामले अकेले इंदौर में मिले हैं.

क्या नीतीश कुमार के गृह जनपद में मुसलमान सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे हैं?

कोरोना संकट के दौरान गहराती सांप्रदायिकता का नया उदाहरण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह ज़िले नालंदा के बिहार शरीफ में देखने को मिला है, जहां मुस्लिम रहवासियों का आरोप है कि हिंदू दुकानदारों द्वारा उन्हें सामान नहीं दिया जा रहा और उनका सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है.

विदेशियों को शरण देने के आरोपी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को निलंबित किया गया

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर को जिला प्रशासन की अनुमति के बिना ग़ैर-क़ानूनी रूप से विदेशियों को ठहरने की व्यवस्था करने समेत विभिन्न आरोपों में गिरफ़्तार किया गया है.

भारतीय मुसलमानों के लिए दोहरी मार बनकर आया है कोरोना वायरस

सब जानते हैं कि कोविड-19 एक घातक वायरस की वजह से फैला है, लेकिन भारत में इसे सांप्रदायिक जामा पहना दिया गया है. आने वाले समय में यह याद रखा जाएगा कि जब पूरे देश में लॉकडाउन हुआ था, तब भी मुसलमान सांप्रदायिक हिंसा का शिकार हो रहे थे.

यूपी: इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पर मरकज़ में शामिल होने की बात छिपाने का आरोप, मामला दर्ज

पुलिस के अनुसार इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर मार्च के पहले सप्ताह में दिल्ली में हुए तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम में शामिल हुए थे, जिसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं में ड्यूटी भी दी. मामला सामने आने के बाद उन्हें परिवार समेत क्वारंटाइन में भेजा गया है.

कोरोना संकट: जंग की ललकार की नहीं, दोस्ती की पुकार की घड़ी

युद्ध असाधारण परिस्थिति उत्पन्न करता है, जहां समाचार, विचार और सामाजिक आचार सिर्फ सरकारें तय कर सकती हैं. युद्ध में सरकार से सवाल जुर्म होता है और सैनिक से बलिदान की अपेक्षा की जाती है. ऐसे में अगर डॉक्टर ख़ुद को संक्रमण से बचाने की सामग्री की मांग करते हुए काम रोक दें तो वही जनता, जो इनके लिए करतल ध्वनि के कोलाहल का उत्सव मना रही थी, इनके लिए सज़ा की मांग करेगी.

यह महामारी एक नई दुनिया में क़दम रखने का मौक़ा है

महामारियों ने हमेशा से ही इंसान को अतीत से नाता तोड़कर एक नए भविष्य की कल्पना करने के लिए मजबूर किया है. यह महामारी भी नए और पुराने के बीच एक दरवाज़ा है और यह हम पर है कि हम पूर्वाग्रह, नफ़रत, लोभ आदि के कंकाल ढोते हुए आगे बढ़ें या बिना ऐसे बोझों के एक नई और बेहतर दुनिया की कल्पना के साथ आगे निकलें.