अपने संवेदनशील सैन्य प्रतिष्ठानों के ऊपर उड़ रहे एक चीनी जासूसी गुब्बारे को अमेरिका ने बीते 4 फरवरी को मार गिराया था. अब अमेरिकी अख़बार ‘द वॉशिंगटन पोस्ट’ ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि चीन से संचालित जासूसी गुब्बारों ने जापान, भारत, वियतनाम, ताइवान और फिलीपींस सहित चीन के लिए उभरते रणनीतिक हित के देशों और क्षेत्रों में सैन्य संपत्ति के बारे में जानकारी एकत्र की है.
अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के विरोध में अमेरिका के साथ कई सहयोग कार्यक्रमों पर रोक लगाने के बीच अफ़ग़ानिस्तान के लिए चीन के विशेष दूत यू. शाओयोंग इस युद्ध प्रभावित राष्ट्र में सुरक्षा हालातों और मानवीय सहायता पर भारतीय अधिकारियों से चर्चा करने के लिए पहली बार भारत आए.
ताइवान को अपना क्षेत्र बताते हुए चीन उसके अधिकारियों की विदेशी सरकारों के साथ बातचीत का विरोध करता रहा है. चीन ने नैंसी पेलोसी की यात्रा का भी विरोध करते हुए अमेरिका को परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है. पेलोसी पिछले 25 वर्षों में ताइवान की यात्रा करने वाली अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की पहली अध्यक्ष हैं.
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ताइवान और ईरान ने स्वीकार्य सीमा से अधिक कीटनाशकों की मौजूदगी के चलते भारत से भेजी गई चाय की खेप लेने से इनकार कर दिया. बीते हफ्ते निर्यात की गई चाय की गुणवत्ता पर उठे सवालों के बीच चाय बोर्ड ने सभी उत्पादकों और विक्रेताओं को एफएसएसएआई के गुणवत्ता मानकों का कड़ाई से पालन करने के निर्देश जारी किए थे.
ताइवान पर चीन अपना अधिकार होने का दावा करता है, जबकि यह द्वीप 1949 में गृहयुद्ध के दौरान कम्युनिस्ट शासित मुख्य भूमि से अलग होने के बाद से स्वायत्तशासी है. दोनों देशों में बढ़ते तनाव के बीच ताइवान की राष्ट्रपति ने बातचीत और आपसी सम्मान का आह्वान करते हुए कहा कि ताइवान का भविष्य ताइवान के लोगों द्वारा ही तय किया जाना चाहिए.
लिथुआनिया सरकार द्वारा संचालित साइबर सुरक्षा निकाय ने कहा है कि इन चाइनीज़ मोबाइल फोन में ‘फ्री तिब्बत’, ‘लॉन्ग लिव ताइवान इंडिपेंडेंस’ या ‘डेमोक्रेटिक मूवमेंट’ जैसे शब्दों को तत्काल पकड़ने और इन्हें सेंसर करने की क्षमता होती है.
चीन में कामगारों के बढ़ते वेतन और अमेरिका के साथ इसके ट्रेड वॉर के बाद कई मल्टीनेशनल कंपनियों ने वहां से अपने मैन्युफैक्चरिंग बेस शिफ्ट करने शुरू कर दिए थे, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद अप्रैल 2018 से लेकर अगस्त 2019 के बीच ऐसी कंपनियों में से सिर्फ तीन ही भारत आईं.
लोगों को यक़ीन दिलाया गया कि नेताजी इसलिए भूमिगत रहे क्योंकि नेहरू ने ब्रिटिश सरकार से गुपचुप समझौता किया था कि अगर नेताजी कभी जीवित मिलते हैं तो उन्हें एक युद्ध अपराधी के रूप में तत्काल ब्रिटेन को सौंप दिया जाएगा.