उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में बीते मई महीने में समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के उद्देश्य से समिति का गठन किया था. इसे सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक़, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले क़ानूनों के एक समान समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो.
मामला गुजरात के खेड़ा ज़िले का है. आरोप है कि मुस्लिम समुदाय मस्जिद के पास गरबा आयोजित करने का विरोध कर रहा था, जिसके चलते उन्होंने कार्यक्रम स्थल पर पथराव कर दिया. बाद में पुलिस ने तीन संदिग्ध हमलावरों को गांव के चौराहे पर खड़ा करके सबके सामने लाठियों से पीटा. वहीं, सूरत में गरबा पंडाल के आयोजकों को इसलिए पीटा गया क्योंकि उन्होंने ग़ैर-हिंदुओं को काम पर रखा था.
केरल सरकार ने केंद्र से मनरेगा योजना के तहत होने वाले समानांतर कार्यों को सीमित करने के फैसले को रद्द करने का आग्रह करते हुए कहा कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी, जो पहले ही कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण उत्पन्न संकट से उबरने की कोशिश कर रही है.
उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले का मामला. पुलिस ने बताया कि तीन फ़कीरों से अभद्रता के मामले में एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि इस तथ्य की भी जानकारी की जा रही है कि ये तीनों फ़कीर कौन लोग थे और किस कारण से उस ग्रामसभा में गए थे.
उत्तराखंड सरकार के एक आदेश में कहा गया है कि पांच सदस्यीय समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई करेंगी, जो वर्तमान में भारत के परिसीमन आयोग की प्रमुख हैं. अन्य सदस्यों में दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश प्रमोद कोहली, सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह और दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल शामिल हैं.
केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन और तीन अन्य को पांच अक्टूबर 2020 को हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले की रिपोर्टिंग के लिए जाते समय गिरफ़्तार किया गया था. केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अवमानना याचिका में आरोप लगाया गया है कि उचित चिकित्सीय देखभाल की कमी की वजह से कप्पन बीमार हैं और वे गंभीर दर्द से जूझ रहे हैं.
5 अक्टूबर 2020 को केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन और तीन अन्य को हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले की रिपोर्टिंग के लिए जाते समय गिरफ़्तार किया गया था. कप्पन की तत्काल रिहाई की मांग को लेकर विभिन्न पत्रकार संघों ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के बाहर प्रदर्शन करते हुए कहा कि उन पर लगाए गए आरोप मनमाने हैं.
यूपी पुलिस ने पिछले साल अक्टूबर में हाथरस जाने के रास्ते में केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन समेत चार युवकों को गिरफ़्तार किया था. पुलिस ने कप्पन के लेखों के आधार पर कहा है कि वे ज़िम्मेदार पत्रकार नहीं हैं और माओवादियों के समर्थन में लिखते हैं.
वीडियो: देशद्रोह और यूएपीए के तहत गिरफ़्तार उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर निवासी अतीक़-उर-रहमान की हालत बेहद गंभीर बताई जा रही है. परिवार और उनके वकील का कहना है कि वह दिल की बीमारी से पीड़ित हैं. बार-बार अर्ज़ी देने के बाद भी न तो सुनवाई हो रही न उनका सही इलाज करवाया जा रहा है. द वायर ने अतीकुर्रहमान के वक़ील मधुवन दत्त, भाई और पत्नी से बात की.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, राजद्रोह के इन मामलों में से 141 में आरोप-पत्र दायर किए गए, जबकि छह साल की अवधि के दौरान इस अपराध के लिए महज छह लोगों को दोषी ठहराया गया. सबसे अधिक 54 मामले असम में दर्ज किए गए, लेकिन एक भी मामले में किसी को दोषी नहीं ठहराया गया. मंत्रालय ने अभी तक 2020 के आंकड़े एकत्रित नहीं किए हैं.
आईपीसी की धारा 124ए को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगते हुए कोर्ट ने कहा कि यह औपनिवेशिक काल का क़ानून है, जिसे ब्रिटिशों ने स्वतंत्रता संग्राम को दबाने और महात्मा गांधी, गोखले आदि को चुप कराने के लिए इस्तेमाल किया था. क्या आज़ादी के इतने समय बाद भी इसे बनाए रखना ज़रूरी है.
यूपी पुलिस ने पिछले साल अक्टूबर में हाथरस जाने के रास्ते में केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन समेत चार युवकों को गिरफ़्तार किया था, जिसके बाद उन पर शांतिभंग और यूएपीए के तहत मामले दर्ज किए गए थे. आरोप है कि कप्पन और उनके साथी हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के मद्देनज़र सांप्रदायिक दंगे भड़काने और सामाजिक सद्भाव को बाधित करने की कोशिश कर रहे थे.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने चार अगस्त 2020 के आदेश में परिवर्तन करते हुए यह बात कही हैं. उस आदेश में शीर्ष न्यायालय ने कोरोना वायरस के जोख़िम को देखते हुए बुज़ुर्ग लोगों को भर्ती एवं इलाज में प्राथमिकता देने का निर्देश केवल सरकारी अस्पतालों को दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत में यातना से संबंधी मामले में अपने एक पुराने आदेश का संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को सीबीआई, ईडी और एनआईए समेत सभी केंद्रीय एजेंसियों और पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरा लगाने का निर्देश देते हुए इसके लिए केंद्र और राज्य स्तर पर निगरानी समिति बनाने को कहा है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष (रिटा.) जस्टिस एचएल दत्तू ने बताया कि एक अक्टूबर 2019 से इ 30 सितंबर 2020 तक आयोग ने 73,729 शिकायतें दर्ज की हैं.