कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस समय गांधी सच्चे प्रतिरोध, प्रगतिशीलता, अध्यात्म और सच-प्रेम-सद्भाव-न्याय पर आधारित राजनीति के सबसे उजले प्रतीक हैं. उनकी मूल्यदृष्टि को पुनर्नवा कर भारत की बहुलता, उसकी आत्मा और अंतःकरण बचाए जा सकते हैं.
कला-यात्रा: वेनिस में प्रतिष्ठित बिनाले के साठवें संस्करण की शुरुआत हो चुकी है. अफ़सोस यह है कि पूरा विश्व जब अपने सांस्कृतिक स्रोतों के संवर्धन पर ध्यान दे रहा है, भारत अपनी विशिष्ट उपलब्धि को रेखांकित करने में नाकामयाब रहा है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: लोकतंत्र अपने आप सीधी राह पर वापस नहीं आता या आ सकता. हम ऐसे मुक़ाम पर हैं जहां नागरिक के लोकतांत्रिक विवेक की परीक्षा है. उन्हें ही निर्णय करना है कि वे लोकतंत्र पर सीधी राह पर वापस लाने की कोशिश करना चाहते हैं या नहीं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हबीब तनवीर का रंगमंच असाधारण रूप से गाता-नाचता-भागता-दौड़ता रंगमंच था. प्रश्नवाचक और नैतिक होते हुए भी वह आनंददायी था. उनके यहां नाटक लीला है और कई बार वह आधुनिकता की गुरुगंभीरता को मुंह चिढ़ाता भी लगता है.
इराक़ी पत्रकार मुंतज़र अल ज़ैदी की आत्मकथा ‘द लास्ट सैल्यूट टू प्रेसिडेंट बुश’ पर आधारित, फिल्मकार महेश भट्ट का नाटक ‘द लास्ट सैल्यूट’ अब किताब की शक्ल में सामने आया है. इस पर बात करते हुए भट्ट ने कहा कि कुछ ही लोग होंगे जो हिम्मत करके सच लिखेंगे और कुछ ही लोग होंगे जो थिएटर के ज़रिये इसे पेश करेंगे.
वीडियो: आंखों देखी, दम लगा के हईशा और लाल सिंह चड्ढा जैसी फ़िल्मों के साथ-साथ पंचायत, मिर्ज़ापुर और ब्रीद: इनटू द शैडोज जैसी वेब-सीरीज़ में अभिनय कर चुके अभिनेता श्रीकांत वर्मा से उनके जीवन, रंगमंच, सिनेमा और ओटीटी पर उनके अनुभव और यात्रा के बारे में बातचीत.
स्मृति शेष: कलाकार के लिए ज़रूरी है वो अपनी रूह पर किरदार का लिबास ओढ़ ले. किरदार दर किरदार रूह लिबास बदलती रहे, देह वही किरदार नज़र आए. सतीश कौशिक को ये बख़ूबी आता था.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हमारी सभ्यता आरंभ से ही प्रश्नवाचक रही है और उसकी प्रश्नवाचकता-असहमति-वाद-विवाद, संवाद का भारत में पुनर्वास करने की ज़रूरत है. इस समय जो धार्मिक और बौद्धिक, राजनीतिक और बाज़ारू ठगी हमें दिग्भ्रमित कर रही है, उससे अलग कोई रास्ता कौन तलाश करेगा यह हमारे समय का एक यक्षप्रश्न है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हबीब तनवीर का रंगसत्य लोग थे: लोग, जो साधारण और नामहीन थे, जो अभाव और विपन्नता में रहते थे लेकिन जिनमें अदम्य जिजीविषा, मटमैली पर सच्ची गरिमा और सतत संघर्षशीलता की दीप्ति थी.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पीटर ब्रुक ने पिछली शताब्दी के उत्तरार्द्ध में विश्व रंगमंच पर महाकाव्यात्मक दृष्टि का एक तरह से पुनर्वास किया. शेक्सपियर, अत्तार, महाभारत आदि सभी नाटक उनके लिए मनुष्य के संघर्ष, व्यथा-यंत्रणा, हर्ष-विषाद, उल्लास और उदासी, सार्थकता और व्यर्थता, उत्कर्ष और पराजय आदि की कथा कहने जैसे थे.
इप्टा ने आज़ादी के 75वें वर्ष के अवसर पर 'ढाई आखर प्रेम के' शीर्षक से हुई सांस्कृतिक यात्रा का आयोजन किया था. इसके समापन समारोह में लेखक, अभिनेता व निर्देशक सुधन्वा देशपांडे द्वारा 'नाटक में प्रतिरोध की धारा' विषय पर दिया गया संबोधन.
85 वर्षीय सौमित्र चटर्जी कोविड संक्रमित होने के बाद क़रीब एक महीने से कई बीमारियों के चलते अस्पताल में भर्ती थे. सत्यजीत रे की अपुर संसार से फिल्मी सफर शुरू करने वाले चटर्जी को पद्मभूषण समेत ढेरों राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था.
भोपाल में मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ ड्रामा के एक वर्षीय अभिनय प्रशिक्षण कोर्स के 2019-20 सत्र के विद्यार्थी बीते दो सप्ताह से अधिक समय से प्रबंधन के ख़िलाफ़ आंदोलनरत हैं. उनका कहना है कि कोरोना के चलते उनके बैच को प्रमोशन देकर नया सत्र शुरू किया जा रहा है जबकि उनका प्रशिक्षण अभी तक पूरा नहीं हुआ है.
साक्षात्कार: भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे का जो असर समाज पर पड़ा, उसकी पीड़ा सिनेमा के परदे पर भी नज़र आई. एमएस सथ्यू की 'गर्म हवा' विभाजन पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है. इस फिल्म समेत सथ्यू से उनके विभिन्न अनुभवों पर द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ भाटिया की बातचीत.
इब्राहिम अल्काज़ी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में सबसे लंबे समय तक निदेशक के पद पर रहे. उन्होंने कलाकारों की कई पीढ़ियों को अभिनय की बारीकियां सिखाईं. इन कलाकारों में नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी आदि शामिल हैं.