कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने द हिंदू अख़बार में प्रकाशित शैव मठ ‘तिरुववदुथुरई अधीनम’ के प्रधान पुजारी के एक इंटरव्यू का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि इस बात का कोई स्पष्ट दस्तावेज़ी सबूत नहीं है कि प्रधानमंत्री नेहरू को सौंपे जाने से पहले सेंगोल भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को दिया गया था.
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नए संसद भवन में स्थापित सेंगोल पहले लॉर्ड माउंटबेटन को दिए जाने के दावे पर संशय जताते हुए ‘तिरुववदुथुरई अधीनम’ के प्रमुख ने कहा, ‘उन्हें सेंगोल देने का क्या अर्थ था? आख़िर वे सभी शक्तियां सौंपते हुए भारत छोड़कर जा रहे थे.’
जवाहरलाल नेहरू ने आज़ादी के समय तमिलनाडु के अधीनम (शैव मठ) के पुराहितों के द्वारा सेंगोल को तो ले लिया, लेकिन उसके पीछे के विचार से असहमति के कारण उसको संग्रहालय में रखवा दिया, ताकि भविष्य में अध्येता यह समझ सकें कि भारतीय जनतंत्र का जन्म अनेक परस्पर विरोधी विचारों के बीच हुआ है.
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने दावा किया है कि ‘सेंगोल’ नामक स्वर्ण राजदंड 15 अगस्त, 1947 को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर ब्रिटिश भारत के अंतिम वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा था. इस राजदंड को नई संसद में स्थापित किया गया है.