जैसे सभ्यता का दूसरा पहलू बर्बरता का है, वैसे ही जनतंत्र का दूसरा पहलू तानाशाही है. जनतंत्र की तानाशाही इसलिए भी ख़तरनाक है कि उसे खुद जनता लाती है. वह लोकप्रिय मत के सहारे सत्ता हासिल करती है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की 32वीं क़िस्त.
जैसे सभ्यता का दूसरा पहलू बर्बरता का है, वैसे ही जनतंत्र का दूसरा पहलू तानाशाही है. जनतंत्र की तानाशाही इसलिए भी ख़तरनाक है कि उसे खुद जनता लाती है. वह लोकप्रिय मत के सहारे सत्ता हासिल करती है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की 32वीं क़िस्त.