जब सांप्रदायिकता और पत्रकारिता में भेद मिट जाए, तब इसका विरोध कैसे करना चाहिए?

जब पत्रकारिता सांप्रदायिकता की ध्वजवाहक बन जाए तब उसका विरोध क्या राजनीतिक के अलावा कुछ और हो सकता है? और जनता के बीच ले जाए बग़ैर उस विरोध का कोई मतलब रह जाता है? इस सवाल का जवाब दिए बिना क्या यह समय बर्बाद करने जैसा नहीं है कि 'इंडिया' गठबंधन का तरीका सही है या नहीं.

‘इंडिया’ गठबंधन के नफ़रती एंकरों का बहिष्कार करने से क्या फ़र्क़ पड़ेगा?

वीडियो: विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन ने चौदह न्यूज़ एंकरों के नामों की घोषणा करते हुए कहा है कि इनके शो पर गठबंधन में शामिल कोई भी दल अपना प्रतिनिधि नहीं भेजेगा. इस बारे में कांग्रेस प्रवक्ता आलोक शर्मा से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.

‘भड़काऊ बहसें’ आयोजित करने वाले टीवी शो का बहिष्कार करेगा ‘इंडिया’ गठबंधन

इंडिया 'गठबंधन' की समन्वय समिति की पहली बैठक बुधवार को नई दिल्ली में एनसीपी प्रमुख शरद पवार के आवास पर हुई थी, जहां 12 दलों के नेताओं के बीच जाति जनगणना के मुद्दे पर आम सहमति बनी.

क्या स्टूडियो के तूफ़ान में हिलती एंकर देश के मीडिया की स्थिति का प्रतीक है

श्वेता स्टूडियो में हिल रही हैं. इसे देखकर लोग हंस रहे हैं मगर श्वेता वीडियो में गंभीरता के साथ हिली जा रही हैं. यह नरेंद्र मोदी का आज का भारत है और उनके दौर का मीडिया है. आज के भारत का मानसिक और बौद्धिक स्तर यही हो चुका है. वर्ना गोदी मीडिया से ज़्यादा आम दर्शक इसकी आलोचना करता.

यदि एंकर नफ़रती भाषण का हिस्सा बनता है, तो उसे प्रसारण से क्यों नहीं हटाया जा सकता: अदालत

सुप्रीम कोर्ट ने टीवी समाचार सामग्री पर नियामकीय नियंत्रण की कमी पर अफ़सोस जताते हुए कहा कि नफ़रत फैलाने वाले भाषण एक ‘बड़ा ख़तरा’ हैं. भारत में ‘स्वतंत्र एवं संतुलित प्रेस’ की ज़रूरत है. अदालत ने कहा कि आजकल सब कुछ टीआरपी से संचालित होता है. चैनल एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं.

टीवी की ज़हरीली बहसें महज़ लक्षण हैं, राजनीति और समाज को खा रही बीमारी तो कहीं और है

बीते दिनों केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री ने कई प्राइम टाइम टीवी एंकरों और बड़े चैनलों के संपादकों को यह चर्चा करने के लिए बुलाया कि क्या समाचार चैनलों पर सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाली बहसों को कम किया जा सकता है. मंत्री जी स्पष्ट तौर पर ग़लत जगह इलाज का नुस्ख़ा आज़मा रहे हैं, जबकि असल रोग उनकी नाक के नीचे ही है.

कासगंज सांप्रदायिक हिंसा: और कितने चंदन गुप्ता की बलि चाहते हैं ये टीवी एंकर?

सच तो ये है कि आप हिंदुओं के पक्ष में भी नहीं बोल रहे हैं. आप सिर्फ़ एक राजनीतिक दल के अघोषित प्रवक्ता बने हुए हैं. हिंदू-मुस्लिम तनाव पैदा करके आप उनके राजनीतिक हित साध रहे हैं.