भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने न्याय तक पहुंच को ‘सामाजिक उद्धार का उपकरण’ बताते हुए कहा कि आधुनिक भारत का निर्माण समाज में असमानताओं को दूर करने के लक्ष्य के साथ किया गया था. लोकतंत्र का मतलब सभी की भागीदारी के लिए स्थान मुहैया कराना है. सामाजिक उद्धार के बिना यह भागीदारी संभव नहीं होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अंधाधुंध गिरफ़्तारियां औपनिवेशिक मानसिकता का संकेत हैं. देश की जेलें विचाराधीन कैदियों से भरी हैं. अनावश्यक गिरफ़्तारियां सीआरपीसी की धारा 41 व 41(ए) का उल्लंघन हैं. कोर्ट ने ज़मानत आवेदनों के निपटारे को लेकर निचली अदालतों को भी फटकार लगाई.
एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों और इंडिया जस्टिस रिपोर्ट द्वारा उसके विश्लेषण बताता है कि साल 2020 में जेल में बंद विचाराधीन क़ैदियों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है जबकि दोषसिद्धि के आंकड़े में कमी आई है. इसके चलते जेल में बंद कुल क़ैदियों में विचाराधीन बंदियों की संख्या तीन-चौथाई से अधिक है.
बरनाला ज़िले की जेल में बंद एक विचाराधीन क़ैदी ने अदालत में कहा कि जेल में एड्स और हेपेटाइटिस पीड़ितों को अलग वॉर्ड में नहीं रखा जाता और जब भी उन्होंने इस मसले को उठाने की कोशिश की तो जेल अधीक्षक ने उन्हें पीटा. जेल अधीक्षक ने क़ैदी पर मनगढ़ंत कहानियां बनाने का आरोप लगाया है.