वीडियो: समान नागरिक संहिता को लेकर देश में होने वाली राजनीतिक बहस नई नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना कि यूसीसी देश की ज़रूरत है, क्या असल में सच है?
क़ानून और न्याय पर संसदीय समिति के अध्यक्ष और भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने उत्तर-पूर्व और देश के अन्य हिस्सों के आदिवासियों को समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रखने का सुझाव दिया. वहीं जबकि विपक्षी दलों ने इस विवादास्पद मुद्दे पर नए सिरे से विचार-विमर्श के समय पर सवाल उठाए हैं.
द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में समान नागरिक संहिता की पुरज़ोर वकालत के बाद मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड में विभिन्न संगठनों ने इसके ख़िलाफ़ विरोधी तेवर अपना लिए हैं. एक नगा संगठन ने विधानसभा द्वारा यूसीसी के समर्थन में विधेयक पारित करने की स्थिति में हिंसा की चेतावनी दी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत के बाद मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा और नेशनल पीपुल्स पार्टी प्रमुख ने कहा कि पूर्वोत्तर में अनूठी संस्कृति और समाज है और वह ऐसे ही रहना चाहेंगे. उन्होंने यह भी जोड़ा कि विविधता भारत की ताक़त है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में की गई समान नागरिक संहिता की पैरवी पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि उनका विचार सांप्रदायिक तनाव और क़ानून-व्यवस्था की समस्या पैदा करना है. उन्हें लगता है कि वह इससे अगला चुनाव जीत सकते हैं.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को दिए एक भाषण में समान नागरिक संहिता की पुरज़ोर वकालत की थी. इस पर कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने कहा है कि वे कई मोर्चों पर उनकी सरकार की विफलता से ध्यान भटकाने के लिए विभाजनकारी राजनीति का सहारा ले रहे हैं.
2018 में 21वें विधि आयोग ने कहा था कि इस समय समान नागरिक संहिता की ज़रूरत नहीं है. अब 22वें विधि आयोग ने एक नई अधिसूचना जारी करते हुए इस बारे में जनता और धार्मिक संगठनों समेत विभिन्न हितधारकों राय मांगी है. विपक्ष ने इसे विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देने की कोशिश बताया है.
समान नागरिक संहिता 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शुमार था. 2022 के अंत में हुए गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भी भाजपा के प्रमुख मुद्दों में समान नागरिक संहिता को लागू करना शामिल था.
अवैध मज़ारों को ध्वस्त करने की बात कहते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि ये नया उत्तराखंड है, यहां अतिक्रमण करना तो दूर इसके बारे में अब कोई सोचे भी ना. साथ ही उन्होंने कहा कि वह कुछ ही महीनों के बाद प्रदेश में समान नागरिक संहिता का क़ानून भी लागू करेंगे.
मिज़ोरम विधानसभा में समान नागरिक संहिता लागू करने के किसी भी प्रयास का विरोध करने का प्रस्ताव पेश करते हुए गृह मंत्री लालचमलियाना ने कहा कि यूसीसी देश को विघटित कर देगा क्योंकि यह मिज़ो समेत धार्मिक अल्पसंख्यकों की धार्मिक, सामाजिक प्रथाओं, संस्कृतियों व परंपराओं को ख़त्म करने की कोशिश है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि देश के संविधान में बुनियादी अधिकारों में हर व्यक्ति को अपने धर्म पर अमल करने की आज़ादी दी गई है. इसलिए हुकूमत से अपील है कि वह आम नागरिकों की मज़हबी आज़ादी का एहतराम करे, क्योंकि समान नागरिक संहिता लागू करना अलोकतांत्रिक होगा.
केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह भी बताया कि 22वां विधि आयोग समान नागरिक संहिता से संबंधित मामले पर विचार कर सकता है. उन्होंने बताया कि सरकार ने भारत के 21वें विधि आयोग से अनुरोध किया था, लेकिन इसकी अवधि 31 अगस्त 2018 को समाप्त हो गई.
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड और गुजरात में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए समितियां गठित करने के उन राज्य सरकारों के फैसलों को चुनौती देने वाली याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा कि संविधान राज्यों को इस तरह की समितियों के गठन का अधिकार देता है.